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1. भारतीय मानसून
डॉ. क
ु लदीप ससिंह क
ै त
एसोससएट प्रोफ
े सर,
उच्चतर सिक्षा विभाग, हररयाणा
2. भूसमका
• एसिया और यूरोप का वििाल भूभाग, जिसका
एक हहस्सा भारत भी है, ग्रीष्मकाल में गरम
होने लगता है। इसक
े कारण उसक
े ऊपर की
हिा गरम होकर उठने और बाहर की ओर
बहने लगती है। पीछे रह िाता है कम िायुदाब
िाला एक वििाल प्रदेि। यह प्रदेि अधिक
िायुदाब िाले प्रदेिों से िायु को आकवषित
करता है।
3. • अधिक िायुदाब िाला एक बहुत बडा हहस्सा
भारत को घेरने िाले महासागरों क
े ऊपर
मौिूद रहता है क्योंकक सागर, स्थल भागों
जितना गरम नहीिं होता है और इसीसलये उसक
े
ऊपर िायु का घनत्त्ि अधिक रहता है। उच्च
िायुदाब िाले सागर से हिा मानसून पिनों क
े
रूप में ज़मीन की ओर बह चलती है।
4. • दक्षक्षण पजचचमी मानसून भारत क
े दक्षक्षणी
भाग में िून 1 को पहुुँचता है। सािारणतः
मानसून क
े रल क
े तटों पर िून महीने क
े प्रथम
पाुँच हदनों में प्रकट होता है। यहाुँ से िह उत्तर
की ओर बढ़ता है और भारत क
े अधिकािंि
भागों पर िून क
े अन्त तक पूरी तरह छा
िाता है।
5. • अरब सागर से आने िाली पिन उत्तर की ओर
बढ़ते हुए 10 िून तक मुम्बई पहुुँच िाती है।
इस प्रकार ततरूिनिंतपुरम से मुम्बई तक का
सफर िे दस हदन में बडी तेिी से पूरा करती
हैं। इस बीच बिंगाल की खाडी क
े ऊपर से बहने
िाली पिन की प्रगतत भी क
ु छ कम
आचचयििनक नहीिं होती।
6. • यह पिन उत्तर की ओर बढ़कर बिंगाल की
खाडी क
े मध्य भाग से दाखखल होती है और
बडी तेिी से िून क
े प्रथम सप्ताह तक असम
में फ
ै ल िाती है। हहमालय रूपी विघ्न क
े
दक्षक्षणी छोर को प्राप्त करक
े यह मानसूनी
िारा पजचचम की ओर मुड िाती है। इस कारण
उसकी आगे की प्रगतत म्यािंमार की ओर न
होकर गिंगा क
े मैदानों की ओर होती है।
7. • मानसून कोलकाता िहर में मुम्बई से क
ु छ
हदन पहले (सािारणतः िून 7 को) पहुुँच िाता
है। मध्य िून तक अरब सागर से बहने िाली
हिाएुँ सौराष्र, कच्छ ि मध्य भारत क
े प्रदेिों
में फ
ै ल िाती हैं।
8. • इसक
े पचचात बिंगाल की खाडी िाली पिन और
अरब सागर िाली पिन पुनः एक िारा में
सजम्मसलत हो िाती हैं। पजचचमी उत्तर प्रदेि,
हररयाणा, पिंिाब, पूिी रािस्थान आहद बचे हुए
प्रदेि 1 िुलाई तक बाररि की पहली बौछार
अनुभि करते हैं।
9. • उपमहाद्िीप क
े काफी भीतर जस्थत हदल्ली
िैसे ककसी स्थान पर मानसून का आगमन
कौतूहल पैदा करने िाला विषय होता है। कभी-
कभी हदल्ली की पहली बौछार पूिी हदिा से
आती है और कभी बिंगाल की खाडी क
े ऊपर से
बहने िाली िारा का अिंग बनकर दक्षक्षण हदिा
से आती है।
10. भूसमका
• मौसमिाजस्ियों को इस बात का तनचचय करना
कहठन हो िाता है कक हदल्ली की ओर इस
दौड में मानसून की कौन सी िारा विियी
होगी। मध्य िुलाई तक मानसून कचमीर और
देि क
े अन्य बचे हुए भागों में भी फ
ै ल िाता
है। परन्तु एक सिधथल िारा क
े रूप में ही,
क्योंकक तब तक उसकी सारी िजक्त और नमी
खत्म हो चुकी होती है।
11. • सदी में िब स्थल भाग अधिक िल्दी ठिंडे हो
िाते हैं तब प्रबल, िुष्क हिाएुँ उत्तर-पूिी
मानसून बनकर बहती हैं। इनकी हदिा गमी क
े
हदनों की मानसून हिाओिं की हदिा से विपरीत
होती हैं। उत्तर-पूिी मानसून भारत क
े स्थल
और िल भागों में िनिरी की िुरुआत तक,
(िब एसियाई भूभाग का तापमान न्यूनतम
होता हैं), पूणि रूप से छा िाता है।
12. • इस समय उच्च दाब की एक पट्टी पजचचम में
भूमध्य सागर और मध्य एसिया से लेकर उत्तर
भाग में फ
ै ली होती है। बादलहीन आकाि,
बहढ़या मौसम, आर्द्िता की कमी ि हल्की उत्तरी
हिाएुँ इस अिधि में भारत क
े मौसम की
वििेषताएुँ होती हैं। उत्तर-पूिी मानसून क
े
कारण िषाि पररमाण में तो कम, परन्तु सदी
की फ़सलों क
े सलये बहुत लाभकारी होती है।
13. • उत्तरी-पूिी मानसून तसमलानाडु में विस्तृत िषाि
मानसून काल में ही करता है। सम्पूणि भारत
क
े सलये औसत िषाि की मािा 117 सेंटीमीटर
है। िषाि की दृजष्ट से भारत एक ऐसा देि है
जिसक
े एक भाग में प्रायः बाढ़ की जस्थतत और
दूसरे भाग में सूखे की जस्थतत देखने को
समलती है। चेरापुुँिी में साल में 1100
सेंटीमीटर िषाि होती है, तो िैसलमेर में क
े िल
20 सेंटीमीटर ही।
14. • मानसून काल भारत क
े ककसी भी भाग क
े
सलये तनरन्तर िषाि का समय नहीिं होता। क
ु छ
हदनों तक िषाि तनबािि रूप से होती रहती है,
जिसक
े बाद कई हदनों तक बादल चुप्पी साि
लेते हैं। िषाि का आरम्भ भी समस्त भारत या
उसक
े काफी बडे क्षेि क
े सलये अक्सर विलम्ब
से होता है।
15. • कई बार िषाि समय से पहले ही समाप्त हो
िाती है या देि क
े ककसी हहस्से में अन्य
हहस्सों से कई अधिक िषाि हो िाती है। यह
अक्सर होता है और बाढ़ और सूखे की विषम
पररजस्थततयों से देि को िूझना पडता है।
16. • भारत में िषाि का वितरण पिित श्रेखणयों की
जस्थतत पर काफी हद तक आिाररत है। यहद
भारत में मौिूद सभी पिित हटा हदये िाएुँ तो
िषाि की मािा बहुत घट िाएगी। मुम्बई और
पुणे में पडने िाली िषाि इस तथ्य को बखूबी
दिािती है। मानसूनी पिन दक्षक्षण पजचचमी
हदिा से पजचचमी घाट को आने लगती है
जिसक
े कारण इस पिित क
े पिनासभमुख भाग
में भारी िषाि होती है।
17. • मुम्बई िहर, िो कक पजचचमी घाट क
े इस ओर
जस्थत है, में लगभग 187.5 सेंटीमीटर िषाि
होती है, िबकक पुणे, िो कक पजचचमी घाट क
े
पिनासभमुख भाग से क
े िल 160 ककलोमीटर क
े
फासले पर जस्थत है, में माि 50 सेंटीमीटर
िषाि होती है।
18. • पिित श्रेखणयों क
े कारण होने िाली िषाि का एक
अन्य उदाहरण उत्तर-पूिी भारत में जस्थत
चेरापूुँिी है। इस छोटे से कस्बे में िषि में
औसतन 1100 सेंटीमीटर तक िषाि होती है िो
एक समय विचिभर में सिािधिक समझी िाती
थी। यहाुँ िषाि िाले प्रत्येक हदन 100 सेंटीमीटर
तक िषाि हो सकती है। यह विचि क
े अनेक
हहस्सों में िषि भर में होने िाली िषाि से भी
अधिक है।
19. • चेरापूुँिी खासी पहाडडयों क
े दक्षक्षणी ढलान में
दक्षक्षण से उत्तर की ओर िाने िाली एक गहरी
घाटी में जस्थत है। इस पहाडी की औसत ऊ
ुँ चाई
1500 मीटर है। दक्षक्षण हदिा से बहने िाली
मानसूनी हिाएुँ इस घाटी में आकर फ
ुँ स िाती
हैं और अपनी नमी को चेरापूुँिी क
े ऊपर उडेल
देती हैं। एक कौतूहलपूणि बात यह है कक
चेरापूुँिी में अधिकािंि बाररि सुबह क
े समय
होती है।
20. • चूुँकक भारत क
े अधिकािंि भागों में िषाि क
े िल
मानसून क
े तीन चार महीनों में होती है, बडे
तालाबों, बाुँिों और नहरों से दूर जस्थत गाुँिों
में िेष महीनों में पीने क
े पानी का सिंकट हो
िाता है। उन इलाकों में भी िहाुँ िषािकाल में
पयािप्त बाररि होती है। पानी क
े सिंचयन की
व्यिस्था की कमी क
े कारण मानसून पूिि काल
में लोगों को कष्ट सहना पडता है।
21. • भारतीय िषाि न क
े िल बहुत भारी होती है
बजल्क एक बहुत छोटी सी अिधि में ही हो
िाती है, जिसक
े कारण िषाििल को ज़मीन क
े
नीचे उतरने का अिसर नहीिं समल पाता।
िषाििल तुरन्त बहकर बरसाती नहदयों क
े सूखे
पाटों को क
ु छ हदनों क
े सलये भर देता है और
बाढ़ का कारण बनता है।
22. • ज़मीन में कम पानी ररसने से िषिभर बहने
िाले झरने कम ही होतेेे हैं और पानी को
सोख लेने िाली हररयाली पनप नहीिं पाती।
हररयाली रहहत खेतों में िषाि की बडी-बडी बूुँदें
समट्टी को काफी नुकसान पहुुँचाती हैं। समट्टी
क
े ढेले उनक
े आघात से टूटकर बबखर िाते हैं
और अधिक मािा में समट्टी का अपरदन होता
है।
23. मानसून : समय में परिवर्तन
• आि ग्लोबल िासमिंग का असर पूरे भारत में
साफ हदखाई देने लगा है। गत 37 िषों क
े
मौसम सम्बन्िी आुँकडों क
े विचलेषण से साफ
है कक प्रदेि में मानसून करीब 7 से 8 हदन
की देरी से आ रहा है। तीन-चार दिक पहले
की तरह अक्टूबर क
े दौरान अब अच्छी बाररि
नहीिं हो रही है।
24. • मौसम विभाग भी मानसून क
े आगमन की
तारीख बदलने की तैयारी में िुट गया है। ऐसी
जस्थतत में कृ वष योिना सहहत खेती से िुडी
सारी योिनाओिं को नए ससरे से प्लान करना
होगा।
• मौसम विभाग क
े अनुसार छत्तीसगढ़, महाराष्र
और विदभि में मानसून क
े प्रिेि की सामान्य
ततधथ 10 िून होती है। लेककन वपछले साढ़े
तीन दिक क
े आुँकडे अलग ही कहानी कह रहे
हैं।
25. • इिंहदरा गाुँिी कृ वष विचिविद्यालय क
े कृ वष
मौसम िैज्ञातनकों ने मानसून क
े प्रिेि की सही
तारीख का पता लगाने क
े उद्देचय से िषि
1971 से लेकर 2008 तक क
े आुँकडों का
विचलेषण ककया जिसक
े फलस्िरूप यह ज्ञात
हुआ कक इन 37 सालों में सबसे िल्दी
मानसून 1971 में (तीन िून को) आया था।
26.
27. • मानसून क
े सिािधिक विलम्ब से पहुुँचने का
ररकाडि 1987 का है, िब बाररि की पहली
झडी पाुँच िुलाई को आई थी।
• इस साल भी मानसून िल्दी में (तीन िून को)
पहुुँचा है ओर तनरबाि गतत से आगे कक ओर
चल रहा है