3. सन ् 1857 ई़ के विद्रोिी नेता नाना सािब कानपुि में असफल िोने पि जब
भागने लगे, तो िे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके । देिी
मैना बबठू ि में वपता के मिल में ििती थीीं; पि विद्रोि दमन किने के बाद
अींग्रेज़ों ने बङी िी क्रु िता से उस ननिीि औि ननिीपिाध देिी को भी एक बाि
द्रिीभूत कि देता िै।
कानपुि में भीषण ित्याकाींड किने के बाद अींग्रेज़ों का सैननक दल बबठू ि की
ओि गया। बबठू ि में नाना सािब का िाजमिल लूट ललया गया; पि उसमें
बिुत थोङी सम्पवि अींग्रेज़ों के िाथ लगी। इसके बाद अींग्रेज़ों ने तोप के गोल़ों
से नाना सािब का मिल भस्म कि देने का ननश्चय ककया। सैननक दल ने
जब ििााँ तोपें लगायीीं, उस समय मिल के बिामदे में एक अत्यन्त सुन्दि
बाललका आकि खङी िो गयी। उसे देख कि अींग्रेज सेनापनत को बङा आश्चयय
िुआः क्य़ोंकक मिल लूटने के समय िि बाललका ििााँ किीीं हदखाई न दी थी।
4. यि पाठ लेखखका चपला देिी द्िािा ललखा गया िै। इस पाठ में उन्ि़ोंनें मातृभूलम की
स्ितींत्रता औि उसकी िक्षा के ललए जजन्ि़ोंने अपने प्राण़ों का बललदान दे हदया, उनके
जीिन का उत्कषय िमािे ललए गौिि औि सम्मान की बात िै।
उस गौििशाली ककीं तु विस्मृत पींिपिा से ककशोि पीढी को परिचचत किने के उद्देश्य से
इस िचना को हिींदू पींच के बललदान अींक से ललया गया िै। इस पाठ में बताया गया
िैं कक सन् 1857 की क्राींनत के विद्रोिी नेता धुींधूपींत नाना सािब की पुत्री मैना,
आजादी की एक नन्िीीं लसपािी, को कै से अींग्रेज़ों ने जलाकि माि डाला। इस पाठ में
चपला देिी ने मैना की बललदान की किानी को प्रस्तुत ककया िै।
5. सन् 1857 में अींग्रेज़ों को विद्रोिी नेता धुींधूपींत नाना सािब ने बिुत क्षनत
पिुाँचाई थी ,पिींतु कानपुि में विद्रोि की असफलता के कािण उन्िें भागना
पडा। िे जल्दी में अपनी पुत्री मैना को साथ न ले जा सके , जो बबठूि में
वपता के मिल नें ििती थी। विद्रोि दमन किने के बाद अींग्रेज़ों ने बडी िी
क्रू िता से देिी मैना को अजनन में भस्म कि हदया।
कानपुि में भीषण ित्याकाींड किने के बाद अींग्रेजी सेना ने बबठूि में ज्यादा
सींपवि िाथ न लगी। इसके बाद अींग्रेज़ों ने तोप के गोल़ों से मिल को भस्म
किने का फै सला ककया। जब सैननक दल ने तोपें लगायीीं , उस समय मिल
के बिामदे में एक अत्यन्त सुींदि बाललका आकि खडी िो गई। उस बाललका
ने अींग्रेज के सेनापनत से मिल को नष्ट न किने का अनुिोध ककया।
सेनापनत ने बताया कक मिल को भस्म किना िी िोगा। अपना अनुिोध
विफल िोते देिी मैना ने सेनापनत को बताया कक िि उनकी बेटी मैिी की
सिेली िैं।
6. देिी मैना ने यि भी बताया कक मैिी की मृत्यु से िि बिुत दुखी िुई थी औि
मैिी का एक पत्र अभी तक उसके पास िैं। जनिल ‘िे’ ने किा कक बिहटश
सिकाि की आज्ञा को िि टाल निीीं सकते, पिींतु मिल को बचाने का प्रयास
जरुि किेगें।
उसी समय प्रधान सेनापनत अउटिम ििााँ आ गया औि अब तक मिल न
चगिाने का कािण पुछा। जनिल ‘िे' ने मकान बचाने का अनुिोध ककया।
अउटिम ने बताया कक गिनयि जनिल की इच्छा के मुताबबक िी फै सला िोगा।
तब ‘िे' ने गिनयि जनिल को पत्र ललखकि मकान बचाने का अनुिोध ककया।
गिनयि जनिल का फै सला ‘िे' के विरुध्द में आया औि ‘िे’ ििााँ से चला गए।
उसके बाद अींग्रेज़ों ने मिल में लूटपाट की औि देिी मैना को ढूढाँना चािा पिींतु
उन्िें िि लमल न पाई। शाम तक मिल धिस्त िो गया।
7. इस पाठ के माध्यम से नई पीढी को स्ितींत्रता सेनाननय़ों के
बािे में रुचच उत्पन्न कििाना औि देश के प्रनत प्रेम की भािना
जागरूत किना िैं। उन्िें देश की महिलाओीं तथा पुरूष़ों के
बललदान के बािे में भी बताना िैं। सन् 1857 के विद्रोि में
स्ितींत्रता पाने तथा देश की िक्षा के ललए लाख़ों देश भक्त़ों को
कु बायनी देनी पडी, जैसे नाना सािब, िानी लक्ष्मी बाई, तात्याीं
तोपे, बेगम िजित मिल इत्याहद। इनके बािे में लोग़ों को
बताना, यिी इस पाठ का उद्देश्य िैं।
9. प्र1. मैना जड पदाथय मकान को बचाना चािती थीीं पि अींग्रेज
उसे नष्ट क्य़ों किना चािते थे ?
प्र2. सेनापनत ‘िे’ के मैना पि दया-भाि का क्या कािण थे?
प्र3. मैना की अींनतम इच्छा थी कक िि उस प्रासाद के ढेि
पि बैठकि जी भिकि िो ले लेककन पाषाण हॄदय जनिल
ने ककस भय से उनकी इच्छा पूणय न िोने दी ?
प्र4. बाललका मैना के चरित्र की कौन-कौन सी विशेषताएाँ
आप अपनाना चािेंगे औि क्य़ों ?
प्र5. स्िाधीनता आींदोलन को आगे बढाने में इस प्रकाि के
लेखन की क्या भूलमका ििी िोगी ?
10. प्र1. नाना सािब कौन थें ?
प्र2. नाना सािब ककस विद्रोि में विफल िो गए थें?
प्र3. नाना सािब की पुत्री का क्या नाम था ?
प्र4. देिी मैना किााँ ििती थीीं ?
प्र5. अींग्रज़ों के सैननक दल के सेनापनत का पूिा नाम क्या था ?
प्र6. सेनापनत िे की पुत्री का क्या नाम था ?
प्र7. प्रधान सेनापनत का क्या नाम था ?
प्र8. इनतिासिेिा का अथय बताइए।
11. प्र9. उस समय के गिनयि जनिल कौन थें ?
प्र10. सेनापनत िे थोडी देि बाद देिी मैना का पक्ष क्य़ों लेने लगे ?
प्र11. उस समय लींडन के सुप्रलसध्द पत्र का क्या नाम था ?
प्र12. सन् 1857 के लसतम्बि मास में अध्दय िाबत्र
के समय कौन िो ििी थी ?
प्र13. मैना किााँ बैठकि िो ििी थी ?
प्र14. मैना को ककसने चगिफ्ताि ककया ?
प्र15. सब ने ककसको देिी समझकि प्रणाम ककया ?
13. भाित को आजादी हदलाने में महिलाओीं का मित्िपुणय योगदान
ििा। गााँधी जी ने किााँ था कक िमािी मााँ-बिऩों के सियोग के
बबना स्ितींत्र िोना असींभि था। आजादी की लडाई में महिलाओीं
ने अींग्रेज़ों को जमकि लोिा हदया। यि भाित की नािी िी थी
जजसने अींग्रेज़ों को लोिे के चने चबिा हदए। महिलाओीं के सािस
से भिी किाननयााँ िमािे देश के गौिि को बढाती िैं। 1857 से
1947 तक की स्िाधीनता की दास्तान महिलाओीं के जजक्र के
बबना अधूिी िैं।
14. सिोजजनी गोविींद नायडू का जन्म िैदिाबाद में 13
फिििी 1879 को िुआ था। उनकी माता का नाम ििद
सुींदिी तथा वपता का नाम अघोिनाथ चट्टोपाध्याय था।
उन्ि़ोंने उच्च लशक्षा के ललए इींनलैंड के के बिज
विश्िविद्दालय में प्रिेश ललया।
1914 में िि पिली बाि गााँधी जी से लमली औि
उनके विचाि़ों से प्रभावित िोकि देश के ललए समवपयत
िो गई। सिोजजनी नायडू ने अनेक आींदोलऩों का नेतृत्ि
ककया। िि गााँि-गााँि घूमकि देश-प्रेम का अलख
जगाती ििीीं औि देशिालसय़ों को उनके कतयव्य याद
हदलाती ििीीं। िि एक धीि िीिाींगना थीीं औि कभी भी
सींकट़ों से घबिाती निीीं थीीं।
सिोजजनी नायडू को भाित की कोयल किा जाता िैं।
सिोजजनी नायडू
15. िानी लक्ष्मीबाई का जन्म िािाणसी में 19 निम्बि
1835 को िुआ था। उनका बचपन का नाम
मखणकखणयका था। सब प्याि से उन्िें मनु किते थें।
उनकी माता का नाम भागीिथीबाई तथा वपता का
नाम मोिोपींत ताींबे था। िानी लक्ष्मीबाई ने बचपन में
शास्त्ऱों एिीं शस्त्ऱों की लशक्षा ली। सन् 1842 में उनका
वििाि झााँसी के िाजा गींगाधि िाि नेिालकि के साथ
िुआ।
सन् 1857 स्ितींत्रता सींग्राम में िानी लक्ष्मीबाई का
अतुलीय योगदान ििा। उन्ि़ोंने युध्द में अींग्रेज़ों के
छक्के छु डा हदए थें। झााँसी की सुिक्षा िेतु िानी
लक्ष्मीबाई ने एक सेना का गठन ककया था जजसमें
महिलाएाँ भी शालमल थी। स्ितींत्रता सींग्राम में नािी का
आगे आकि लडना िानी लक्ष्मीबाई की देन थी। िानी
लक्ष्मीबाई के अप्रनतम शौयय से चककत अींग्रज़ों ने भी
उनकी प्रशींसा की थी।
िानी लक्ष्मीबाई
16. िानी लक्ष्मीबाई ना लसफय बजल्क िि एक आदशय िैं उन सभी
महिलाओीं के ललए जो खुद को बिादुि मानती िैं औि उनके ललए भी जो सोचते िैं
कक महिलाएाँ कु छ निीीं कि सकती िैं।
बुींदेले िि बोलो के मुींि, िमने सुनी किानी थी, खूब लडी मदायनी िि तो झााँसी
िाली िानी थी.... सुभद्र कु मािी चौिान की यि पींजक्तयााँ न के िल मिािानी
लक्ष्मीबाई की िीिगाथा बयाीं किती िैं, बजल्क इन पींजक्तय़ों को पढने से मन में
देशभजक्त का एक अद्धभुत सींचाि िो उठता िैं।