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Bhishma Pitamah in Mahabharat
कहानी गंगापुत्र भीष्म की - [Bhishma Pitamah in
Mahabharat]
भीष्म हिन्दूओं के प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक थे। जोकि युद्ध में घायल होने के बाद बाणों की
शैय्या पर लेटे थे। इन्होंने महाभारत का युद्ध कौरवों की तरफ से लड़ा था इसलिए इन्हें अंतिम कौरव भी माना जाता है।
धार्मिक स्रोतों के आधार पर, भगवान ब्रह्मा से अत्रि, अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध, बुध से इलानंदन पुरुरवा, पुरुरवा से
आयु, आयु से राजा नहुष, नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। फिर आगे चलकर ययाति से पुरु वंश की स्थापना हुई। जिनसे भरत
और भरत से कु रु हुए। भीष्म कु रु वंश में ही एक राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु और गंगा से हुए थे।
इनका आरंभिक नाम देवव्रत था लेकिन आगे चलकर वह अपनी भीषण प्रतिज्ञाओं के चलते भीष्म के नाम से पहचाने गए।
साथ ही पांडव और कौरव उन्हें पितामह कहते थे इसलिए यह भीष्म पितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसके अलावा इन्हें
गांगेय, शांतनव, तालके तू और नदीज आदि नामों से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार, भीष्म अपने पूर्वजन्म में वसु थे, लेकिन एक श्राप के चलते उन्हें महाभारत काल में मनुष्य योनि में
जन्म लेना पड़ा। ऐसे में आज हम आपके लिए भीष्म के जीवन से जुड़ी समस्त रोचक जानकारियां लेकर आए हैं। जिससे
2. आप भीष्म पितामह के जीवन चरित्र को आसानी से समझ पाएंगे।
पिछले जन्म में भीष्म थे एक वसु – Bhishma Previous Birth
पुराणों के आधार पर, प्राचीन समय में एक बार वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत का भ्रमण कर रहे थे। कि तभी एक
घौ नामक वसु की पत्नी को गुरु वसिष्ठ के आश्रम के समीप नंदिनी नामक गाय दिखी। जिसे देखते ही वसु की पत्नी ने उसे
पाने की इच्छा जाहिर की। ऐसे में घौ नामक वसु ने अपने भाइयों के साथ मिलकर उस गाय का हरण कर लिया।
थोड़े समय बाद जब गुरु वसिष्ठ अपने आश्रम पर पहुंचे तब उन्हें अपनी गाय वहां नहीं मिली। जिसपर उन्होंने अपनी दिव्य
दृष्टि से वसु द्वारा गाय का हरण किए जाने वाली घटना को जान लिया और फिर उन्होंने घौ नामक वसु को मनुष्य योनि में
जन्म लेने का श्राप दे दिया। आदि पर्व के अनुसार माना जाता है कि उपरोक्त वसु ने आगे चलकर पृथ्वी लोक पर गंगापुत्र
भीष्म के रूप में जन्म लिया था।
देवव्रत से भीष्म बनने की कहानी – Bhishma Real Name
धार्मिक कहानी के अनुसार, एक बार राजा शांतनु शिकार के दौरान गंगा घाट के समीप पहुंचे। जहां उनका परिचय एक
सुंदर सी स्त्री से हुआ, जिसे देखकर राजा शांतनु उपरोक्त स्त्री पर मोहित हो गए और आगे चलकर उन्होंने उससे विवाह
करने की इच्छा जताई।
वह सुंदर सी स्त्री राजा शांतनु से विवाह करने को तैयार तो हो गई लेकिन उन्होंने राजा शांतनु के आगे एक शर्त रख दी कि
वह जीवन में कभी भी उसके द्वारा कोई भी कार्य करने पर उसे टोकें गे नहीं। अन्यथा वह उन्हें छोड़कर चली जाएगी।
राजा शांतनु ने उस स्त्री की बात मान ली और उससे विवाह कर लिया। जिसके बाद राजा शांतनु और उपरोक्त स्त्री के
मिलन से सात बालकों का जन्म हुआ। जन्म के तुरंत बाद ही उपरोक्त स्त्री ने एक एक करके अपने सातों पुत्रों को गंगा में
बहा दिया।
लेकिन राजा शांतनु शर्त के मुताबिक उससे कु छ भी कह पाने में असमर्थ थे। फिर जब राजा शांतनु के आंठवी संतान हुई
तब उन्होंने हिम्मत करके उसे गंगा में प्रवाहित करने पर अपनी पत्नी को टोक दिया। तब उस स्त्री ने बताया कि वह देवनदी
गंगा है और राजा शांतनु के सभी पुत्रों को पूर्वजन्म में गुरु वसिष्ठ का अभिशाप मिला हुआ था इसलिए वह उन्हें गंगा में बहा
रही थी।
लेकिन राजा शांतनु ने अपने दिए हुए वचन को जैसे ही तोड़ा, तो देवनदी गंगा उनके आठवें पुत्र को लेकर चली गई।
जिसके बाद राजा शांतनु काफी उदासी भरा जीवन व्यतीत करने लगे। वह तबसे हर रोज गंगा नदी के तट पर आकर
अपनी गलती के लिए देवनदी गंगा से क्षमा मांगते थे।
3. एक दिन उन्हें गंगा तट के पास एक बालक दिखाई पड़ा। राजा शांतनु जैसे ही उस बालक को देखकर आगे बढ़े। तभी
देवनदी गंगा वहां प्रकट हो गई। और उन्होंने राजा शांतनु से कहा कि यह आपकी आठवीं संतान है। जिसका नाम देवव्रत है
और स्वयं भगवान परशुराम इसके गुरु हैं।
साथ ही उन्होंने राजा शांतनु को बताया कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है बल्कि यह समस्त वेदों, पुराणों और
शस्त्र अस्त्र का ज्ञाता है। जिसके बाद राजा शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत को हस्तिनापुर का राज्य दे दिया। लेकिन शायद
नियति को कु छ और मंजूर था। क्योंकि देवव्रत ने अपनी सौतेली माता सत्यवती को यह वचन दिया था कि वह आजीवन
अविवाहित रहेंगे और कभी भी हस्तिनापुर के सिंहासन पर नहीं बैठेंगे।
देवव्रत ने अपने पिता राजा शांतनु को भी यह वचन दिया था कि वह सदैव हस्तिनापुर की रक्षा करेंगे और तब तक प्राण
नहीं त्यागेंगे जब तक हस्तिनापुर को सुरक्षित हाथों में नहीं सौंप देंगे। अपनी इसी प्रतिज्ञा के चलते आगे चलकर यह देवव्रत
भीष्म के नाम से जाने गए।
भीष्म ने महाभारत युद्ध में दिया अपने पराक्रम का परिचय – Bhishma in
Mahabharat
जैसा कि आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध के समय भीष्म कौरवों की तरफ से लड़े थे और कौरवों की सेना में प्रधान
सेनापति थे। हालांकि युद्ध से पहले भीष्म ने पांडव और कौरवों को समझाया था लेकिन तब तक शायद काफी देर हो चुकी
थी। दूसरी ओर, युद्ध से पहले पांडव युधिष्ठिर ने भीष्म का आशीर्वाद लेकर उनसे विजयी भव का वरदान प्राप्त किया था।
परन्तु वह सब जानते थे कि युद्ध भूमि में भीष्म को हराना मुश्किल होगा।
ऐसे में जब भीष्म की ओर से पांडवों को युद्ध में करारी शिकस्त दी जा रही थी कि तभी भगवान श्री कृ ष्ण ने अर्जुन को
भीष्म से युद्ध लड़ने के लिए आगे कर दिया। हालांकि युद्ध नियम बनाते समय भीष्म ने खुद अर्जुन से युद्ध ना लड़ने की
बात कही थी। लेकिन उस दौरान अर्जुन भी भीष्म के युद्ध कौशल के आगे कमजोर पड़ गए थे।
जिसपर भगवान श्री कृ ष्ण ने भीष्म को हराने के लिए स्वयं सुदर्शन चक्र उठाया और अपने रथ के साथ भीष्म से युद्ध करने
के लिए आगे बढ़ चले। जिस पर अर्जुन ने भगवान श्री कृ ष्ण को रोक लिया था। फिर जब भीष्म को हराने का पांडवों के
पास कोई उपाय नहीं बचा तो वह पांचों पांडव मिलकर भीष्म के पास गए और उन्हें हराने का उपाय पूछने लगे। जिसपर
भीष्म ने पांडवों को स्वयं अपनी मृत्यु का भेद बता दिया था।
भीष्म द्वारा विवशता पूर्ण किए गए कार्य
जहां एक ओर महाभारत काल में हम भीष्म के त्याग और बल की कहानियों से परिचित होते हैं तो वहीं दूसरी ओर उसी
काल की कई सारी ऐसी घटनाएं हैं। जो भीष्म द्वारा किए गए अधर्म को उजागर करती हैं।
4. सर्वप्रथम, भीष्म ने अपने पिता शांतनु की इच्छा के चलते सत्यवती नामक स्त्री से उनका विवाह कराया था। जहां उन्होंने
अपनी दूसरी माता सत्यवती के कहने पर आजीवन ब्रह्मचारी रहने और हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी ना बनना स्वीकार
किया था।
ऐसे में हस्तिनापुर के सिंहासन पर कु रु वंश को स्थापित रखने के लिए भीष्म द्वारा कई पापों को अंजाम दिया गया। इतना
ही नहीं अपनी माता सत्यवती के पुत्रों के लिए ही भीष्म ने काशी नरेश की तीन पुत्रियों (अंबा, अंबालिका और अंबिका) का
अपहरण कर लिया था।
बाद में अंबालिका और अंबिका से उन्होंने अपने भाई विचित्रवीर्य का विवाह करवा दिया था। दूसरी ओर, भीष्म ने ही
कौरवों की माता गांधारी की इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह धृतराष्ट्र से करवा दिया था।
कहा जाता है इसलिए माता गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। तो वहीं द्रौपदी चीरहरण के समय भी भीष्म
मौजूद थे लेकिन उन्होंने कौरवों को यह पाप करने से नहीं रोका। साथ ही कहा जाता है कि भीष्म अपने जीवन के अंतिम
समय में इसलिए बाणों की शैय्या पर लेटे थे क्योंकि उन्होंने अपने 101वें जन्म के समय एक करकैं टा नामक पक्षी का
शिकार किया था।
जोकि घायल होकर बेरिया के पेड़ पर जाकर गिरा था, जिससे बेरिया के कांटे उसकी पीठ में चुभ गए थे और करीब
अठारह दिनों तक वह तड़पता रहा। कहते है उसी ने भीष्म को यह श्राप दिया था कि वह मृत्यु के समय इसी प्रकार से दर्द
में तड़पेंगे।
इस प्रकार हम कह सकते है कि भीष्म पितामह ने जन्म जन्मांतर अपने अच्छे और बुरे दोनों ही कर्मों का फल प्राप्त किया।
महाभारत काल का जन्म भी भीष्म को पूर्व जन्म में मिले श्राप के कारण ही मिला था। जहां भीष्म करीब 170 साल तक
जीवित रहे।
भीष्म ने अपने गुरु भगवान परशुराम से किया था युद्ध – Bhishma and
Parshuram Fight
धार्मिक कहानी के आधार पर, भीष्म अपने भाइयों के लिए जब काशी नरेश की पुत्री अंबा का हरण करके लाए थे, तब
अंबा ने भीष्म को बताया था कि वह मन ही मन किसी और को अपना पति मान चुकी है। जिसके बाद भीष्म ने अंबा को
सम्मान जनक वापस पहुंचा दिया था। लेकिन अंबा को उसके प्रेम ने हरण की बात सुनकर ठुकरा दिया।
जिस पर वह भगवान परशुराम के पास मदद मांगने गई। तब भगवान परशुराम ने भीष्म से अंबा का हाथ थामने को कहा
लेकिन ब्रह्मचर्य का पालन करने की वजह से भीष्म पितामह ने अंबा से विवाह करने के लिए इंकार कर दिया। जिस पर
भगवान परशुराम और भीष्म के मध्य भीषण युद्ध हुआ।
हालांकि युद्ध की गंभीरता को देखते हुए भगवान शिव ने स्वयं इस युद्ध को रोक दिया था। लेकिन आगे चलकर अंबा ने
5. शिखंडी का रूप धारण कर भीष्म पितामह से बदला लिया था।
भीष्म पितामह की चमत्कारी शक्तियां – Bhishma Pitamah’s Boon
भीष्म को जन्म से ही अस्त्र और शस्त्र विद्या का अच्छा ज्ञान प्राप्त था। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सारे युद्धों में विजय
हासिल की थी। फिर चाहे वह हस्तिनापुर की रक्षा का विषय हो या महाभारत का युद्ध। भीष्म ने ही कौरवों और पांडवों को
शिक्षा दी थी।
साथ ही अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए भीष्म ने अपनी माता सत्यवती के बेटों की मृत्यु के बाद उनकी विधवाओं की
दुष्टों से रक्षा की थी। और तो और इन्होंने ही अपने पूर्व भाई कृ ष्ण द्वैपायन से अपने दोनों भाइयों की विधवाओं के द्वारा
पाण्डु और धृतराष्ट्र का जन्म करवाया था।
भीष्म ने सदैव ही अपनी कु शल नीतियों और पराक्रम बुद्धि का परिचय दिया है। इसके अलावा, भीष्म के पास पांच
चमत्कारी तीर थे, जिससे उन्होंने पांचों पांडवों के सिर काटने का वचन दुर्योधन को दिया था लेकिन दुर्योधन ने एक क्षत्रिय
वचन के चलते अपनी रक्षा करने के बदले में यह पांचों तीर अर्जुन को दे दिए थे। इस प्रकार, भीष्म की चमत्कारी शक्तियों
के बारे में अधिक विस्तार से बताना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
पांडवों की सेना का शिखंडी बना भीष्म की मौत का कारण – Bhishma’s Death
महाभारत के युद्ध के दौरान जब पांचों पांडव भीष्म पितामह से उनको हराने की युक्ति पूछने गए थे। तब भीष्म ने पांडवों
को अपनी मृत्यु का राज बता दिया था। उन्होंने बताया कि तुम्हारी सेना में जो शिखंडी है वह अर्धनारीश्वर है। अर्जुन यदि
उसके पीछे खड़े होकर मुझपर तीर चलाता है तो मेरी मृत्यु निश्चित है।
जानकारी के लिए बता दें की शिखंडी काशी नरेश की पुत्री अंबा का ही रूप था, जिन्हें भीष्म को मारने का वरदान मिला
था। इस प्रकार, अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर भीष्म के ऊपर बाण चला दिए। जिससे घायल होकर भीष्म बाणों
की शैय्या पर लेट जाते है लेकिन क्यूंकि भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था तो उन्होंने अपने मृत्यु से पहले काफी
दिन बाणों की शैय्या पर काटे।
दूसरा, जब भीष्म को अर्जुन ने अपने बाणों से घायल किया था उस दौरान सूर्य दक्षिणायन में था, इसलिए भी भीष्म ने
अपने प्राण नहीं त्यागे थे। इस दौरान उन्होंने युधिष्ठिर को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान दिया। साथ ही द्रौपदी से क्षमा
भी मांगी।
फिर करीब 58 दिन बाद सूर्य उत्तरायण के दौरान भीष्म ने भगवान श्री कृ ष्ण को संबोधित करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
और जिस दिन भीष्म ने अपने प्राण त्यागे थे उसी दिन को भीष्म अष्टमी के तौर पर मनाया जाता है।
6. भीष्म पितामह का संक्षिप्त परिचय
नामभीष्म (देवव्रत)पिता का नाममहाराज शांतनुमाता का नामगंगाजन्म स्थानहस्तिनापुरपिछला जन्मश्रापित वसुजन्म
तिथिमाघ कृ ष्ण पक्ष की नौमीगुरुपरशुरामवंशकु रुभाई बहन7 भाईउपाधिकौरवों और पांडवों के पितामहकौशलअस्त्र शस्त्र
और वेदों के ज्ञातावैवाहिक स्थितिअविवाहितलोकप्रियताभीष्म प्रतिज्ञाएंमहाभारत युद्ध में दायित्ववरदानइच्छा मृत्युमृत्यु का
कारणपांडवों की सेना में मौजूद महाराज शिखंडी, अर्जुन के बाणों से घायलजयंतीभीष्म अष्टमीआयु170 वर्ष
इस प्रकार, भीष्म के बारे में पढ़कर हम यह कह सकते हैं कि वह कोई साधारण पुरुष नहीं थे। बल्कि कड़ी योग विद्या
धारण करके उन्होंने जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य का पालन किया। साथ ही महाभारत काल में उनसे अधिक कु शल राजनीतिज्ञ
कोई दूसरा नहीं था, इसलिए महाभारत काल में इन्हें सबसे अधिक अनुभवी माना गया है।
दूसरा, भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा और वचनों के आधार पर कई सारे धर्म विरोधी कार्यों को भी अंजाम दिया। जिसके चलते
हमें उनके चरित्र से एक योद्धा होने के साथ साथ परिस्थितियों के आगे विवश पुरुष की कहानी के बारे में भी ज्ञात होता है
लेकिन इस आधार पर ना तो उन्हें महाभारत का महान् योद्धा कहा जा सकता है और ना ही पूर्ण तरीके से खलनायक की
श्रेणी में रखा जा सकता है। क्योंकि उन्होंने जीवन पर्यन्त धर्म और राज्य के हितों की रक्षा के लिए कार्य किया था।
gurukul99.com · by Skip to content · Jan 13, 2022