त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा श्री त्रयंबकेश्वर की नगरी में की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। त्रिपिंडी श्राद्ध का अर्थ है तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का विधिपूर्वक श्राद्ध। इन तीनों पीढ़ियों में यदि किसी वंशज, मातृसत्तात्मक, गुरुवंश या ससुराल कुल के व्यक्ति ने नियमानुसार श्राद्ध नहीं किया है तो उसे त्रिपिंडी श्राद्ध करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नारायण नागबली पूजा त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण पूजाओं में से एक है पितरों की आत्मा की शांति के लिए की जाने वाली शांति पूजा। नारायण नागबली पूजा दो पूजाओं का संयोजन है जिसमें नारायण बलि पूजा और नागबली पूजा शामिल हैं। नारायण नागबली पूजा का मुख्य उद्देश्य पितृदोष से मुक्ति पाना है
पितृ दोष को दूर करने और सर्पों के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए नारायण नागबली पूजा की जाती है। त्र्यंबकेश्वर में नारायण नागबली पूजा के अनुष्ठान करने के लिए, ताम्रपत्रधारी पंडित जी (गुरुजी) से संपर्क करना पड़ता है, जिन्हें तीर्थ पुरोहित के रूप में जाना जाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार के नजदीक में स्थित अहिल्या गोदावरी मंदिर और सती महास्माशन में पूजा की जाती है
नारायण नागबली पूजा त्र्यंबकेश्वर में की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण पूजाओं में से एक है पितरों की आत्मा की शांति के लिए की जाने वाली शांति पूजा। नारायण नागबली पूजा दो पूजाओं का संयोजन है जिसमें नारायण बलि पूजा और नागबली पूजा शामिल हैं। नारायण नागबली पूजा का मुख्य उद्देश्य पितृदोष से मुक्ति पाना है
पितृ दोष को दूर करने और सर्पों के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए नारायण नागबली पूजा की जाती है। त्र्यंबकेश्वर में नारायण नागबली पूजा के अनुष्ठान करने के लिए, ताम्रपत्रधारी पंडित जी (गुरुजी) से संपर्क करना पड़ता है, जिन्हें तीर्थ पुरोहित के रूप में जाना जाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार के नजदीक में स्थित अहिल्या गोदावरी मंदिर और सती महास्माशन में पूजा की जाती है
नैमिषारण्य तीर्थ विश्व का सबसे प्राचीन तीर्थ है क्योंकि सतयुग के प्रारम्भ में जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा नामक प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री को मैथुनी सृष्टि के लिये प्रकट किया तब इन दोनांे ने पृथ्वी लोक पर दीर्घ समय तक एक क्षत्र राज्य किया और प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनेको ऐश्वर्यो का भोग कर अपना राज्य अपने पुत्र को खुशी - खुशी देकर आत्म संतुष्टि के लिये चल पड़े। सम्पूर्ण विश्व की वन्दनीय, दिव्य ऋषि मुनियाे से सेवित नैमिषारण्य नामक तपोभूमि में आकर तपस्या की।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
स जीवन मे सभी समस्याओ के लिए आध्यात्मिक निवारण हैं और विभिन्न अनुष्ठान करना उनमे से ही एक है। यह माना जाता है की, अन्य मंदिर के तुलना मे त्र्यंबकेश्वर मे पूजा करने से अधिक लाभ होता है। विभिन्न अनुष्ठान जैसे नारायण नागबली, कालसर्प पूजा, महामृत्युंजय मंत्र जाप, त्रिपिंडी श्राद्ध, कुंभ विवाह,रूद्र अभिषेक यहाँ त्रिम्बकेश्वर महादेव मंदिर परिसर मे अधिकृत पुरोहितो और ब्राह्मणो के मार्गदर्शन मे ही किए जाते है। इन पुरोहितो को ताम्रपत्र धारीके नाम से जाना जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र हा धार्मिक मंत्र आहे ज्याला "रुद्र मंत्र" असेही म्हणतात. मात्र या मंत्राला वेगवेगळी नावे व रूपे आहेत. रुद्र हे भगवान त्र्यंबकेश्वर (भगवान शिव) चे एक उग्र रूप आहे. "महामृतुंजय" हा शब्द महा (महान), मृत्यु (मृत्यू) आणि जया (विजय) या तीन शब्दांचे मिश्रण आहे, ज्याचा अर्थ मृत्यूवर विजय असा होतो.
त्र्यंबकेश्वर येथे केली जाणारी काळसर्प दोष पूजा ही एक महत्त्वाची पूजा आहे. ब्रह्मा-विष्णू-महेश यांचे एकत्रित रूप येथे विराजमान असल्याने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग हे बारा ज्योतिर्लिंगांपैकी सर्वात पवित्र मानले जाते. त्यामुळे त्र्यंबकेश्वर मंदिरात पूजा करण्याचे अनेक फायदे आहेत.
नैमिषारण्य तीर्थ विश्व का सबसे प्राचीन तीर्थ है क्योंकि सतयुग के प्रारम्भ में जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा नामक प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री को मैथुनी सृष्टि के लिये प्रकट किया तब इन दोनांे ने पृथ्वी लोक पर दीर्घ समय तक एक क्षत्र राज्य किया और प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनेको ऐश्वर्यो का भोग कर अपना राज्य अपने पुत्र को खुशी - खुशी देकर आत्म संतुष्टि के लिये चल पड़े। सम्पूर्ण विश्व की वन्दनीय, दिव्य ऋषि मुनियाे से सेवित नैमिषारण्य नामक तपोभूमि में आकर तपस्या की।
ब्रह्मचारी गिरीश
कुलाधिपति, महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय
एवं महानिदेशक, महर्षि विश्व शांति की वैश्विक राजधानी
भारत का ब्रह्मस्थान, करौंदी, जिला कटनी (पूर्व में जबलपुर), मध्य प्रदेश
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
स जीवन मे सभी समस्याओ के लिए आध्यात्मिक निवारण हैं और विभिन्न अनुष्ठान करना उनमे से ही एक है। यह माना जाता है की, अन्य मंदिर के तुलना मे त्र्यंबकेश्वर मे पूजा करने से अधिक लाभ होता है। विभिन्न अनुष्ठान जैसे नारायण नागबली, कालसर्प पूजा, महामृत्युंजय मंत्र जाप, त्रिपिंडी श्राद्ध, कुंभ विवाह,रूद्र अभिषेक यहाँ त्रिम्बकेश्वर महादेव मंदिर परिसर मे अधिकृत पुरोहितो और ब्राह्मणो के मार्गदर्शन मे ही किए जाते है। इन पुरोहितो को ताम्रपत्र धारीके नाम से जाना जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र हा धार्मिक मंत्र आहे ज्याला "रुद्र मंत्र" असेही म्हणतात. मात्र या मंत्राला वेगवेगळी नावे व रूपे आहेत. रुद्र हे भगवान त्र्यंबकेश्वर (भगवान शिव) चे एक उग्र रूप आहे. "महामृतुंजय" हा शब्द महा (महान), मृत्यु (मृत्यू) आणि जया (विजय) या तीन शब्दांचे मिश्रण आहे, ज्याचा अर्थ मृत्यूवर विजय असा होतो.
त्र्यंबकेश्वर येथे केली जाणारी काळसर्प दोष पूजा ही एक महत्त्वाची पूजा आहे. ब्रह्मा-विष्णू-महेश यांचे एकत्रित रूप येथे विराजमान असल्याने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग हे बारा ज्योतिर्लिंगांपैकी सर्वात पवित्र मानले जाते. त्यामुळे त्र्यंबकेश्वर मंदिरात पूजा करण्याचे अनेक फायदे आहेत.
As we all know, Trimbakeshwar temple holds significance for performing all kinds of pujas like Narayan Nagabali, Kaal Sarp Dosh, and Tripindi Shradh. This religious ritual should be performed at the holy place of Trimbakeshwar temple near Nashik in Maharashtra.
Tridevata (Lord Brahma, Lord Vishnu, and Lord Shiva) are the main deities in this ritual. Our ancestors must perform Tripindi Shradh as per Hindu tradition to pacify our departed souls.
नारायण नागबली पूजा हि दोन वेगवेगळ्या पूजांचे एकत्रीकरण आहे. ज्यामध्ये नागबळी पूजा व नारायण बळी पूजा यांचा समावेश आहे. ह्या दोन्ही पूजा नारायण नागबळी पूजा म्हणून एकत्रितच केल्या जातात. आपल्या पूर्वजांपैकी एखाद्या व्यक्तीची मृत्यू कुठल्या कारणाने झाली आहे हे निश्चित प्रमाणे माहिती नसते. त्यामुळे असे पूर्वज मृत्यू लोकांत भटकत असतात परिणामी त्यांना पितृदोषाला सामोरे जावे लागते ह्या क्रियेमध्ये व्यक्तीचे नाव अथवा गोत्राचा उच्चार वर्ज्य आहे . त्यामुळे हि पूजा फक्त त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसरातच केली जाते. जिथे भगवान ब्रम्हा, विष्णू व महेश हे ज्योतिर्लिंगाच्या रूपाने जागृत आहेत.
बहुत से लोग जानते हैं कि उनकी कुंडली में कालसर्प दोष होता है, लेकिन यह जानने के बावजूद वे इसे अनदेखा कर देते हैं, तभी जीवन की वास्तविक समस्याएं शुरू होती हैं।
सफल होने के लिए व्यक्ति की कुंडली में यह दोष तभी दूर करना चाहिए जब समाज में नाम और पहचान बनाने के लिए कालसर्प योग शांति पूजा की जाए।
कालसर्प योग शांति पूजा सभी मनोकामनाओं और कामनाओं को पूरा करने के लिए की जाती है। समय के साथ दोष का हानिकारक प्रभाव बढ़ता जाता है, इसलिए जैसे ही उन्हें अपनी कुंडली में इस दोष के बारे में पता चलता है, नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर में यह "कालसर्प योग शांति पूजा" करनी चाहिए।
The Kalasarpa Dosha puja that takes place in Trimbakeshwar is an important puja. It is located at a distance of 28 km from Nashik (Maharashtra) near Trimbakeshwar. In the 12 Jyotirlingas, the Trimbakeshwar Jyotirlinga is considered to be the most sacred, the combined form of Lord Brahma-Vishnu-Mahesh is seated here. Mother Ganga has originated here to get rid of all sufferings. That is why there are many benefits of worshipping at the Trimbakeshwar temple.
The document discusses Narayan Nagbali Puja, a ritual performed in Trimbakeshwar, Maharashtra to provide peace to the souls of ancestors. The puja is performed over three days and involves rituals like bathing at the Kushavarta shrine, installing a kalash, worshipping deities, tarpan, and concluding with darshan at the Trimbakeshwar Jyotirlinga. It is meant to alleviate sins from snake killings or unknown causes of death that prevent ancestors' souls from finding peace. Only certified purohits from Trimbakeshwar who hold ancient copper plates have the right to perform rituals there.
1. त्रिप िंडी श्राद्ध पिधध ूजा त्र्यिंबक
े श्िर
त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा श्री ियिंबक
े श्िर की नगरी में की जाने िाली एक महत्ि ूर्ण ूजा है।
2. त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा
क्या है?
त्रिप िंडी श्राद्ध ूजा श्री त्रयंबक
े श्वर की नगरी में की जाने
वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। त्रिप िंडी श्राद्ध का अर्ण है
तीन पीढ़ियों क
े पूवणजों का ववधिपूवणक श्राद्ि। इन तीनों
पीढ़ियों में यढि ककसी वंशज, मातृसत्तात्मक, गुरुवंश या
ससुराल कु ल क
े व्यक्तत ने ननयमानुसार श्राद्ि नहीं ककया
है तो उसे त्रत्रवपंडी श्राद्ि करने से मोक्ष की प्राक्तत होती है।
त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजन न करने पर व्यक्तत वपतृिोष से
पीड़ित होता है। वपतृिोष में पररवार क
े मृत सिस्य अपने
वंशजों को कोसते हैं, क्जन्हें वपतृ शाप भी कहा जाता है।
3. त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा तीन पीढ़ियों क
े पूवणजों को राक्षसों से मुतत करने क
े ललए की जाती है।
पररवार में कई ऐसे सिस्य होते हैं जो वववाह से पहले ककसी व्यक्तत की असमय मृत्यु,
आकक्स्मक मृत्यु या मृत्यु जैसे ववशेष कारर्ों से मर जाते हैं, उनकी आत्मा को शांनत नहीं
लमलती है। इसललए ऐसी आत्माएं अनंत काल तक िरती पर भटकती रहती हैं और अपने
पररवार में जन्में वंशजों क
े इस िुख से मुतत होना चाहती हैं। ऐसे में हमारे प्राचीन शास्त्रों में
पूवणजों की शांनत क
े ललए त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा का आयोजन ककया जाता है।
त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा का अनुष्ठान, मुख्य रूप से वपतृपक्ष क
े महीने की अमावस्या क
े ढिन,
ववशेष रूप से फलिायी माना जाता है। इसक
े अलावा पूर्र्णमा से पहले क
े 16 ढिन वपतरों को
यज्ञ च़िाने क
े ललए श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह श्राद्ि हर माह त्रयंबक
े श्वर जैसे ववशेष िालमणक
क्षेत्र में ककसी ववशेष मुहूतण का चयन करने क
े बाि ककया जा सकता है।
4. त्रिप िंडी श्राद्ध क्यों करना चाहहए?
त्रत्रवपंडी श्राद्ि करना होगा यढि वपछली तीन पीढ़ियों क
े पररवार से ककसी की
मृत्यु शैशवावस्र्ा या बु़िापे से हुई हो। वपछले तीन वषों से मृतकों को त्रत्रवपंडी
श्राद्ि नहीं ढिया जाता है, जबकक मृतकों को गुस्सा आता है, इसललए हमें उन्हें
शांत करने क
े ललए त्रत्रवपंडी श्राद्ि करना चाढहए। त्रत्रवपंडी श्राद्ि वपछली तीन
पीढ़ियों क
े पूवणजों का वपंडिान है।हम सभी जानते हैं कक त्रयंबक
े श्वर में नारायर्
नागबली, काल सपण िोष, त्रत्रवपंडी श्राद्ि जैसी सभी प्रकार की पूजा-अचणना करना
महत्वपूर्ण है। यह िालमणक पूजा महाराष्र में नालसक क
े पास पववत्र स्र्ल
त्र्यंबक
े श्वर में की जानी चाढहए।
5. त्रिप िंडी श्राद्ध कौन कर सकता है?
त्रत्रवपंडी श्राद्ि को काम्या क
े नाम से भी जाना जाता है, इसललए माता-वपता क
े जीववत रहने पर
भी यह अनुष्ठान ककया जाता है।त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा की रस्म वववाढहत पनत-पत्नी क
े सार् की
जाएगी।पत्नी जीववत न होने पर वविुर और पनत जीववत न होने पर वविुर द्वारा यह पूजा की
जाती है।अवववाढहत व्यक्तत को भी इस पूजा का अधिकार है।ढहंिू वववाह पद्िनत क
े अनुसार,
एक मढहला को शािी क
े बाि अपने पनत क
े घर जाना प़िता है। इसललए उसे अपने माता-वपता
की मृत्यु क
े बाि वपंडिान, तपणर् और श्राद्ि करने का कोई अधिकार नहीं है। लेककन त्रत्रवपंडी
श्राद्ि में एक मढहला भी अपना सार् िे सकती है।
6. त्रिप िंडी श्राद्ध क
े ननयम:
त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा क
े मुहूतण से एक ढिन पहले त्र्यंबक
े श्वर में उपक्स्र्त होना चाढहए।श्राद्िकताण का वपता जीववत
न हो तो उसक
े पुत्र को अनुष्ठान क
े िौरान बाल मुंडवाने प़िते हैं। श्राद्िकताण क
े वपता को जीववत होने पर बाल
काटने की कोई आवश्यकता नहीं है।सफ
े ि कप़िे पहनकर की जाती है पूजा पुरुषों को सफ
े ि क
ु ताण और िोती पहनना
चाढहए और मढहलाओं को सफ
े ि सा़िी पहननी चाढहए। त्रत्रवपंडी श्राद्ि क
े बाि पूजा क
े वस्त्र वहीं छो़िकर उनक
े सार्
लाए गए नए वस्त्र पहने जाते हैं।
त्रिप िंडी श्राद्ध क
े लाभ:
त्रत्रवपंडी श्राद्ि पूजा पूवणजों की अिूरी इच्छाओं को शांत करती है और उनका आशीवाणि भी प्रातत करती है।त्रत्रवपंडी
श्राद्ि पूजा क
े बाि ककए गए वववाह जैसे शुभ कायों में भी सफलता और आशीवाणि प्रातत होता है।पूजा क
े बाि सभी
क्षेत्रों में सफलता प्रातत होती है और सामाक्जक प्रनतष्ठा में प्रगनत संभव है।नौकरी व्यवसाय में पिोन्ननत रुकी
रहेगी और व्यापार में िन वृद्धि होगी।पाररवाररक कलह समातत होने क
े बाि संबंिों में सुिार होता है और सुख की
प्राक्तत होती है।प्रकृ नत में सुिार क
े सार्, शारीररक बीमाररयों से राहत लमलती है।लशक्षा और वववाह से जु़िी सभी
समस्याएं िूर हो जाती हैं।
7. त्र्यिंबक
े श्िर में ताम्र िधारी गुरुजी
त्र्यंबक
े श्वर क्स्र्त ताम्र िधारी िंडडतजी क
े ननवास पर त्रत्रवपंडी श्राद्ि की पूजा की जाती है। त्रयंबक
े श्वर मंढिर में कई
पीढ़ियों से पंडडत जी को पूजा करने का अधिकार ढिया गया है। यह िावा पेशवा काल में संरक्षक्षत तांबे की तलेट पर उत्कीर्ण
है। तांबे क
े पत्ते वाले गुरुजी को त्र्यिंबक
े श्िर ज्योनतर्लिंग मिंहिर में पूजा करने का अधिकार है। यह अधिकार ववरासत में
लमला है। गुरुजी को त्रयंबक
े श्वर में ववलभन्न पूजा और शांनत कमण करने का अधिकार है, इसललए तांबे से पटाए पंडडतजी क
े
ननवास पर त्रत्रवपंडी श्राद्ि अनुष्ठान ककया जाता है।पुरोढहत संघ की वेबसाइट से त्र्यंबक
े श्वर पंडडत जी की ऑनलाइन
बुककंग कर सकते हैं।
यह त्रत्रवपंडी श्राद्ि अनुष्ठान नालसक त्रयंबक
े श्वर मंढिर में ही सभी मनोकामनाओं को पूरा करने और सभी कढठनाइयों को
िूर करने क
े ललए ककया जाता है। इस पूजा अनुष्ठान को करने से भगवान ववष्र्ु की पूजा करने से शारीररक पाप, बोले गए
पाप और अन्य पाप िूर होते हैं।त्रयम्बक
े श्वर में नारायर् नागबली ूजा, कालस ण िोष ूजा, क
ुं भ वववाह, महामृत्युंजय
मंत्रजाप, रुद्रालभषेक, त्रत्रवपंडी श्राद्ि आढि वैढिक अनुष्ठान ककए जाते हैं।
8. हमारे बारे में
श्री क्षेत्र त्र्यंबक
े श्वर की अधिकृ त वेब स्र्ल (साइट) पर आपका स्वागत है
त्र्यंबक
े श्वर क
े पववत्र स्र्ान पर "पुरोढहत संघ" संस्र्ान आपका स्वागत करता है।सभी भततों और प्रशंसकों को ववलभन्न सुवविाएं
प्रिान करने का एकमात्र उद्िेश्य रखकर "पुरोढहत संघ" काम कर रहा है।
नाम और रूप को आवश्यकता क
े अनुसार बिल कर यह संस्र्ान वपछले १२००वषों से काम कर रहा है, लेककन अभी भी संस्र्ा का
उद्िेश्य सभी भततों को बेहतर सुवविाएं प्रिान करने क
े ललए समान है।
सभी अधिकृ त पुरोढहत, "पुरोढहत संघ" संस्र्ान क
े ललए काम कर रहे हैं और वे ७०० साल पुराने शास्त्रों, छत्रपनत लशवाजी महाराज
द्िारा लेख, हस्तलेख, िमणग्रंर् और अन्य क्षेत्रों क
े वैढिक, उद्योगपनत, और प्रनतक्ष्ठत व्यक्ततयों की हस्तलेख क
े ललए एक
ववलशष्ट पहचान है।
पुरोढहत संघ, त्र्यंबक
े श्वर ने भततों और प्रशंसकों की सहायता क
े ललए इस वेब स्र्ल (www.purohitsangh.org) को बनाया है, सभी
भतत और प्रशंसक " त्र्यंबक
े श्वर गुरुजी" (www.purohitsangh.org/trimbakeshwar-guruji) क
े हमारे उपरोतत भाग (वेब स्र्ल)
पर आधिकाररक पुरोढहत क
े ववलभन्न नामों क
े सार् उनक
े ववक्जढटंग काडण संपक
ण करने क
े ललए िेख सकते हैं ताकक आप आसानी से
अनुष्ठान करने क
े ललए उन तक पहुंच सक
ें ।