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Indin trees
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2. बरगद बहुवर्षीय ववशाल वृक्ष है। यह एक
स्थलीय द्ववबीजपत्री एंव सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा एंव
कठोर होता है। इसकी शाखाओं सेजडे ननकलकर हवा में लटकती हैं
तथा बढ़ते हुए जमीन के अंदर घुस जाती हैं एंव स्तंभ बन जाती हैं।
इन जड़ों को बरोह या प्राप जड कहते हैं। इसका फल छोटा
गोलाकार एंव लाल रंग का होता है। इसके अन्दर बीज पाया जाता
है। इसका बीज बहुत छोटा होता है ककन्तु इसका पेड बहुत ववशाल
होता है। इसकी पत्ती चौडी, एंव लगभग अण्डाकार होती है। इसकी
पत्ती, शाखाओं एंव कललकाओं को तोडने से दूध जैसा रस ननकलता
है जजसे लेटेक्स कहा जाता है। हहंदू धमम में वट वृक्ष की बहुत महत्ता
है। ब्रह्मा, ववष्णु, महेश की त्रत्रमूनतम की तरह ही वट,पीपल व नीम
को माना जाता है, अतःएव बरगद को ब्रह्मा समान माना जाता है।
अनेक व्रत व त्यौहाऱों में वटवृक्ष की पूजा की जाती है।
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4. नीम भारतीय मूल का एक सदाबहार वृक्ष है। यह सहदय़ों से समीपवती देश़ों-
पाककस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यानमार (बमाम), थाईलैंड,इंडोनेलशया, श्रीलंका आहद
देश़ों में पाया जाता रहा है। लेककन ववगत लगभग डेढ़ सौ वर्षों में यह वृक्ष भारतीय
उपमहाद्वीप की भौगोललक सीमा को लांघ कर अफ्रीका, आस्रेललया, दक्षक्षण पूवम
एलशया, दक्षक्षण एवं मध्य अमरीका तथा दक्षक्षणी प्रशान्त द्वीपसमूह के अनेक उष्ण
और उप-उष्ण कहटबन्धीय देश़ों में भी पहुुँच चुका है। इसका वानस्पनतक नाम
‘Melia azadirachta अथवा Azadiracta Indica’ है।नीम एक तेजी से बढ़ने
वाला सदाबहार पेड है, जो 15-20 मी (लगभग 50-65 फु ट) की ऊं चाई तक पहुंच
सकता है और कभी-कभी 35-40 मी (115-131 फु ट) तक भी ऊं चा हो सकता है।
नीम एक सदाबहार पेड है लेककन गंभीर सूखे में इसकी अधधकतर या लगभग सभी
पवत्तयां झड जाती हैं। इसकी शाखाओं का प्रसार व्यापक होता है| तना अपेक्षाकृ त
सीधा और छोटा होता है और व्यास मे 1.2 मीटर तक पहुुँच सकता है। इसकी
छाल कठोर, ववदररत (दरारयुक्त) या शल्कीय होती है और इसका रंग सफे द-धूसर
या लाल, भूरा भी हो सकता है। रसदारु भूरा-सफे द और अंत:काष्ठ लाल रंग का
होता है जो वायु के संपकम में आने से लाल-भूरे रंग में पररवनतमत हो जाता
है। जड प्रणाली में एक मजबूत मुख्य मूसला जड और अच्छी तरह से ववकलसत
पार्शवम जडें शालमल होती हैं।
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6. आम अत्यंत उपयोगी, दीघमजीवी, सघन तथा ववशाल वृक्ष है, जो भारत में दक्षक्षण में
कन्याकु मारी से उत्तर में हहमालय की तराई तक (3,000 फु ट की ऊुँ चाई तक) तथा
पजर्शचम में पंजाब से पूवम में आसाम तक, अधधकता से होता है। अनुकू ल जलवायु लमलने
पर इसका वृक्ष 50-60 फु ट की ऊुँ चाई तक पहुुँच जाता है। वनस्पनत वैज्ञाननक वगीकरण
के अनुसार आम ऐनाकार्डमयेसी कु ल का वृक्ष है। आम के कु छ वृक्ष बहुत ही बडे होते हैं
आम का वृक्ष एक फू लदार, बडा स्थलीय वृक्ष है। इसमें दो बीजपत्र होते हैं। इसके फू ल
छोटे-छोटे एवं समूह में रहते हैं। इसे मंजरी कहते हैं। इसकी पत्ती सरल, लम्बी एवं भाले
के समान होती है। इसका तना लम्बा एवं मजबूत होता है। इसका फल
एक गुठलीवाला सरस और गूदेदार होता है। आम का फल ववर्शवप्रलसद्ध स्वाहदष्ट फल
है। इसे फल़ों का राजा कहा गया हैं।
आम का वृक्ष बडा और खडा अथवा फै ला हुआ होता है; ऊुँ चाई 30 से 90 फु ट तक होती
है। छाल खुरदरी तथा मटमैली या काली, लकडी कठीली और ठस होती है। इसकी
पवत्तयाुँ सादी, एकांतररत, लंबी, प्रासाकार (भाले की तरह) अथवा दीघमवृत्ताकार, नुकीली,
पाुँच से 16 इंच तक लंबी, एक से तीन इंच तक चौडी, धचकनी और गहरे हरे रंग की
होती हैं; पवत्तय़ों के ककनारे कभी-कभी लहरदार होते हैं। वृंत (एुँठल) एक से चार इंच तक
लंबे, जोड के पास फू ले हुए होते हैं। पुष्पक्रम संयुत एकवध्यमक्ष (पैननककल), प्रशाखखत
और लोमश होता है। फू ल छोटे, हलके बसंती रंग के या ललछौंह, भीनी गंधमय और
प्राय: एुँठलरहहत होते हैं; नर और उभयललंगी दोऩों प्रकार के फू ल एक ही बार
(पैननककल) पर होते हैं।
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8. बबूल या कीकर (वानस्पनतक नाम : आकास्या नीलोनतका) अकै लसया प्रजानत का
एक वृक्ष है। यह अफ्रीका महाद्वीप एवं भारतीय उपमहाद्वीप का मूल वृक्ष है।
उत्तरी भारत में बबूल की हरी पतली टहननयां दातून के काम आती हैं। बबूल की
दातुन दांत़ों को स्वच्छ और स्वस्थ रखती है। बबूल की लकडी का कोयला भी
अच्छा होता है। हमारे यहां दो तरह के बबूल अधधकतर पाए और उगाये जाते हैं।
एक देशी बबूल जो देर से होता है और दूसरा मासकीट नामक बबूल. बबूल लगा
कर पानी के कटाव को रोका जा सकता है। जब रेधगस्तान अच्छी भूलम की ओर
फै लने लगता है, तब बबूल के जगंल लगा कर रेधगस्तान के इस आक्रमण को रोका
जा सकता है। इस प्रकार पयामवरण को सुधारने में बबूल का अच्छा खासा उपयोग
हो सकता है।[2] बबूल की लकडी बहुत मजबूत होती है। उसमें घुन नहीं लगता. वह
खेती के औजार बनाने के काम आती है।[3]
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10. ]बेर का पेड हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड में कांटें होते हैं। बेर
सुपारी के बराबर होती है। बेर की अनेक जानतयां हैं। जैसे-जंगली बेर, झरबेर, पेवंदी
बेर आहद। इसके पेड में बहुत अच्छी लाख लगती हैं। इसकी लकर्डयां हल, गाडी
आहद बनाने के काम में आती हैं। इसके सूखे पत्ते जानवऱों को खखलाने के ललए
फायदेमंद होता है। इसकी एक छोटी जानत को महाराष्र में बोरटी कहते हैं।
बेर का पेड : बेर का पेड शीतल, रूक्ष और कडवा होता है। यह वपत्त और बलगम
को खत्म करता है।बेर : बेर मधुर और फीके खट्टे होते हैं। पके बेर : पके बेर मधुर
खट्टे, गमम, कफकर, पाचक, लघु और रुधचकारक होते हैं और अनतसार, रक्तदोर्ष,
दस्त और सूखे के रोग को खत्म करता है। बेर के पत्त़ों का लेप करने से बुखार
और जलन शांत हो जाती है। इसकी छाल का लेप करने से ववस्फोटक (चेचक के
दाने) खत्म हो जाते हैं। बेर के गुदे को आंख़ों में लगाने से आंख़ों के रोग खत्म हो
जाते हैं।बडे बेर : यह मधुर, शीतल और वीयम को बढ़ाता है। बेर स्वाहदष्ट, भारी,
ग्राही, लेखन, धचकना, मलावरोधक और आध्यमान कारक (पेट फू लना) होता है तथा
जलन, वपत्त, वायु, थकान और सूजन को खत्म करता है।
सूखे बेर : यह भेदक, लघु और भूख को बढ़ाता है तथा बलगम, वायु, प्यास, वपत्त
और थकान को खत्म करता है ।