2. कब को टेित दीन ह्वै, ोत न स्याम स ाय ।
तुम ूँ लागी जगत गुरु, जगनायक जग बाय ।।
•अर्ाात – े कृ ष्ण, मैं कब से दीन- ीन ोकि तुम् ें बुला ि ा ूँ लेककन तुम ो कक मेिी
मदद ीिं न ीिं कि ि े ो. े जगतगुरु, े जग के नायक क्या तुमको भी इस सिंसाि की
वा लग गई ै ? क्या तुम भी इस दुननया के जैसे ो गए ो ?
नीकी लागग अनाकनी, फीकी पिी गो ारि ।
तज्यो मनो तािन बबिद, बािक बािनन तारि ।।
•अर्ाात – े कृ ष्ण, मुझे लगता ै कक अब तुमको आनाकानी किनी अच्छी लगने लगी ै
औि मेिी पुकाि फीकी पड़ गई ै. मुझे लगता ै कक एक बाि ार्ी को तािने के बाद
तुमने भक्तों को तािना छोड़ ीिं हदया ै.
3. कोहट जतन कोऊ किै, पिै न प्रकृ नतह िं बीच ।
नल बल जल ऊूँ चो चढै, तऊ नीच को नीच ।।
•अर्ाात – चा े किोड़ो बाि भी कोई व्यक्क्त प्रयास क्यों न कि ले, लेककन व ककसी
भी चीज या व्यक्क्त का मल स्वभाव न ीिं बदल सकता ै. ठीक वैसे ीिं जैसे नल में
पानी बलपवाक ऊपि तो चढ जाता ै लेककन कफि भी अपने स्वभाव के अनुसाि
ब ता नीचे की ओि ीिं ै.
गचिजीवौ जोिी जुिै, क्यों न स्ने गम्भीि
को घहट ये वृषभानुजा, वे लधि के बीि ॥
•अर्ाात – य जोड़ी गचििंजीवी ि े, औि क्यों न इनके बीच ग िा प्रेम ो. एक वृषभान
की पुत्री ैं, तो दसिे लधि(बलिाम) के भाई ैं.
वृषभान िाधा के पपता का नाम ै.
4. नह िं पिाग नह िं मधुि मधु नह िं पवकास यह काल ।
अली कली में ी बबन्ध्यो आगे कौन वाल ।।
•अर्ाात – न ीिं इस काल में फल में पिाग ै, न तो मीठी मधु ीिं ै. अगि अभी से भौंिा
फल की कली में ीिं खोया ि ेगा तो आगे न जाने क्या ोगा. दसिे शब्दों में, े िाजन
अभी तो िानी नई-नई ैं, अभी तो उनकी युवावस्र्ा आनी बाकक ै. अगि आप अभी से
ीिं िानी में खोए ि ेंगे, तो आगे क्या ाल ोगा. िाजा जय ससिं अपनी नई पत्नी के प्रेम
में इस कदि खो गए र्े कक िाज्य की ओि उन्ध ोंने बबल्कु ल ्यान देना बिंद कि हदया
र्ा. तब बब ािी ने इस दो े को सलखा।
या अनुिागी गचत्त की, गनत समुझै नह िं कोइ ।
ज्यों-ज्यों बड़ै स्याम ििंग, त्यों-त्यों उज्जलु ोइ ॥
अर्ाात – इस अनुिागी गचत्त की गनत कोई न ीिं समझता ै. इस गचत्त पि जैसे-जैसे श्याम
ििंग (कृ ष्ण का ििंग) चढता ै, वैसे-वैसे य उजला ोता जाता ै.