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टेलीववजन


                                                                                    लेबकन सिाल यह है बक तया उनके यह कह िेने भर से मुि‍ा खत्म हो जाता
                                                                               है बक िे िशर्कों के बलए काम नहीं करते. टैम की टीआरपी के आधार पर ही
                                                                               बिज्ापनिाता तय करते हैं बक बकस चैनल को बकतना बिज्ापन िेना है. आंकड़ों
                                                                               में िेखा जाए तो हर साल करीि 10,000 करोड़ रु की रकम कैसे खचर् होगी
                                                                               इसका आधार एक िड़ी हि तक टीआरपी ही तय करती है. िाजार में हर चैनल
                                                                               मुनाफा कमाने के बलए ही चल रहा है. बिज्ापन या यों कहें बक चैनलों की
                                                                               कमाई जि टीआरपी के आधार पर ही तय हो रही हो तो जाबहर है बक चैनल
                                                                               टीआरपी के बहसाि से अपनी सामग्री में ििलाि करेंगे.

                                                                               खबकिया चैनलों और खास तौर पर बहंिी समाचार चैनलों की सामग्री के
                                                                               मामले में भारत में यही हुआ. 2000 के िाि िेश में तेजी से खिबरया चैनलों की
                                                                               संयया िढ़ी और इस िढ़ोतरी के साथ खिरों की िकृबत भी ििलती चली गई.
                                                                               कुछ चैनलों ने भूत-िेत-चुड़ल और सनसनी िाली खिरों से टीआरपी तया िटोरी
                                                                                                          ै
                                                                               िाकी ज्यािातर चैनल भी इसी राह पर चल पड़े. चलते भी तयों नहीं. सिाल
                                                                               टीआरपी िटोरने का था. बजसकी बजतनी अबधक टीआरपी उसकी उतनी अबधक
                                                                               कमाई. जो इस नई डगर पर चलने के बलए तैयार नहीं थे उनके बलए चैनल चलाने
                                                                               का खचार् बनकालना भी मुबककल हो गया. खिबरया चैनलों की िुबनया में काम
                                                                               करने िाले लोग ही िताते हैं बक टीआरपी नाम के िैत्य ने कई पिकारों की नौकरी
                                                                               ली और कई संपािकों की फजीहत कराई. उनके मुताबिक टीआरपी को ही सि
                                                                               कुछ मान लेने का नतीजा यह हुआ बक गंभीर खिरें लाने िाले पिकारों की हैबसयत
                                                                               कम होती गई और उन्हें अपमान का भी सामना करना पड़ा. िूसरी तरफ अनाप-
      हमने चैनलों से कभी नहीं कहा                                              शनाप खिरें लाकर टीआरपी िटोरने िाले पिकारों का सम्मान और तनयिाह
      कक हमारी रेकटंग की वजह से आप                                             िढ़ती रही. जि-जि खिबरया चैनलों के पथभ्रट‍ होने पर सिाल उठा ति-ति इन
                                                                               चैनलों के संपािक यह कहकर अपना िचाि करते बिखे बक आलोचना करने
      अपनी सामग्री में बदलाव करें
                                                                               िाले पुराने जमाने के पिकार हैं और िे नए जमाने को समझ नहीं पाए हैं. ये संपािक
        सस ाथर् मुखजीर्, वरि उपाध्यक्, टैम                                     िािा करते रहे बक समाज ििला है इसबलए खिरों का बमजाज भी ििलेगा.
                                                                                    लेबकन आज िही संपािक खुि ही टीआरपी पर सिाल उठा रहे हैं. आईिीएन-
औजार है बजसके जबरए िाजार में खपत के बलए माहौल तैयार बकया जाता है.              7 के संपािक आशुतोष ने कुछ समय पहले एक अखिार में छपे अपने लेख में
लोगों के बलए इसकी और कोई िासंबगकता नहीं है.’                                   टीआरपी की व्यिथथा को फौरन िंि करने की मांग की है. 'तहलका' से िातचीत
     टैम के िबरठ‍ उपाध्यक्ष (कम्यूबनकेशस) बसध‍ाथर् मुखजीर् ‘तहलका’ से िातचीत
                                       ं                                       में िे कहते हैं, 'टीआरपी की पूरी व्यिथथा िोषपूणर् और अिैज्ाबनक है. इसमें न तो
में थिीकार करते हैं बक टैम की शुरुआत बिज्ापनिाताओं को ध्यान में रखकर की        हर तिके की भागीिारी है और न ही हर क्षेि की. लोगों की िय क्षमता को ध्यान
गई थी. 'हमें कहा गया था बक हम ये िताएं बकस कायर्िम को बकतना िेखा जाता          में रखकर टीआरपी के मीटर लगाए गए हैं और ऐसे में बिकास की िौड़ में अि
है ताबक इसके आधार पर बिज्ापनिाता अपनी रणनीबत तय कर सकें. इसबलए                 तक पीछे रहे लोगों और क्षेिों की उपेक्षा हो रही है. खिरों और खास तौर पर बहंिी
हम यह िािा नहीं करते बक हम िशर्कों के बलए काम करते हैं. हमारा आम आिमी          समाचार चैनलों में खिरों के भटकाि के बलए सिसे अबधक बजम्मेिार टीआरपी
से कोई लेना-िेना नहीं है.’ बसध‍ाथर् कहते हैं, ‘टैम के आंकड़ों में तो टेलीबिजन   है. अच्छी खिरों की टीआरपी नहीं है. कोई चैनल बकसी िड़ी अंतररा£‍ीय खिर
और बिज्ापन उयोग से जुड़े लोगों और शोध करने िालों को ही बिलचथपी रखनी             को बिखा रहा हो या बफर रा£‍ीय महत्ि की बकसी खिर को उठा रहा हो, उसकी
चाबहए. िूसरों की बिलचथपी का कारण मुझे समझ में नहीं आता. हमारा काम              टीआरपी नहीं आती. भूत-िेत बिखाने िाले चैनल की अच्छी टीआरपी आ जाती
मीटर िाले घरों में िेखे जाने िाले चैनलों की जानकारी एकबित करना और उसके         है.' िकौल आशुतोष, 'एक अिना-सा लड़का भी जानता है बक टीिी में तीन सी,
आधार पर रेबटंग तैयार करना है. इसके िाि हम ये आंकड़े बिज्ापन एजेंबसयों और        यानी बिकेट, िाइम और बसनेमा बिकता है और िथतुतीकरण बजतना सनसनीखेज
टेलीबिजन चैनलों को िे िेते हैं. यहीं हमारा काम खत्म हो जाता है. हमने समाचार    होगा उतनी ही टीआरपी टूटगी. और टीआरपी माने बिज्ापन, बिज्ापन माने पैसा,
                                                                                                            े
चैनलों से कभी नहीं कहा बक हमारी रेबटंग की िजह से आप अपनी सामग्री में           पैसा माने िॉबफट, िॉबफट माने िाजार में जलिा. बजस हफ्ते टीआरपी बगर जाती
ििलाि कर िीबजए.’                                                               है उस हफ्ते एबडटर को नींि नहीं आती, उसको अपनी नौकरी जाती हुई नजर

 607                                                   250                                             13.8 करोड़
 देश में कुल टेलीववजन चैनलों की संख्या                 नए चैनल खोलने के वलए आवेदन पड़े हैं सूचना        भारतीय घरों में पहुंच गया है टेलीववजन
                                                       और प्रसारण मंत्रालय के पास

15 अक्टूबर 2011 तहलका                                                                                                                    आवरण कथा          41

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  • 1. टेलीववजन लेबकन सिाल यह है बक तया उनके यह कह िेने भर से मुि‍ा खत्म हो जाता है बक िे िशर्कों के बलए काम नहीं करते. टैम की टीआरपी के आधार पर ही बिज्ापनिाता तय करते हैं बक बकस चैनल को बकतना बिज्ापन िेना है. आंकड़ों में िेखा जाए तो हर साल करीि 10,000 करोड़ रु की रकम कैसे खचर् होगी इसका आधार एक िड़ी हि तक टीआरपी ही तय करती है. िाजार में हर चैनल मुनाफा कमाने के बलए ही चल रहा है. बिज्ापन या यों कहें बक चैनलों की कमाई जि टीआरपी के आधार पर ही तय हो रही हो तो जाबहर है बक चैनल टीआरपी के बहसाि से अपनी सामग्री में ििलाि करेंगे. खबकिया चैनलों और खास तौर पर बहंिी समाचार चैनलों की सामग्री के मामले में भारत में यही हुआ. 2000 के िाि िेश में तेजी से खिबरया चैनलों की संयया िढ़ी और इस िढ़ोतरी के साथ खिरों की िकृबत भी ििलती चली गई. कुछ चैनलों ने भूत-िेत-चुड़ल और सनसनी िाली खिरों से टीआरपी तया िटोरी ै िाकी ज्यािातर चैनल भी इसी राह पर चल पड़े. चलते भी तयों नहीं. सिाल टीआरपी िटोरने का था. बजसकी बजतनी अबधक टीआरपी उसकी उतनी अबधक कमाई. जो इस नई डगर पर चलने के बलए तैयार नहीं थे उनके बलए चैनल चलाने का खचार् बनकालना भी मुबककल हो गया. खिबरया चैनलों की िुबनया में काम करने िाले लोग ही िताते हैं बक टीआरपी नाम के िैत्य ने कई पिकारों की नौकरी ली और कई संपािकों की फजीहत कराई. उनके मुताबिक टीआरपी को ही सि कुछ मान लेने का नतीजा यह हुआ बक गंभीर खिरें लाने िाले पिकारों की हैबसयत कम होती गई और उन्हें अपमान का भी सामना करना पड़ा. िूसरी तरफ अनाप- हमने चैनलों से कभी नहीं कहा शनाप खिरें लाकर टीआरपी िटोरने िाले पिकारों का सम्मान और तनयिाह कक हमारी रेकटंग की वजह से आप िढ़ती रही. जि-जि खिबरया चैनलों के पथभ्रट‍ होने पर सिाल उठा ति-ति इन चैनलों के संपािक यह कहकर अपना िचाि करते बिखे बक आलोचना करने अपनी सामग्री में बदलाव करें िाले पुराने जमाने के पिकार हैं और िे नए जमाने को समझ नहीं पाए हैं. ये संपािक सस ाथर् मुखजीर्, वरि उपाध्यक्, टैम िािा करते रहे बक समाज ििला है इसबलए खिरों का बमजाज भी ििलेगा. लेबकन आज िही संपािक खुि ही टीआरपी पर सिाल उठा रहे हैं. आईिीएन- औजार है बजसके जबरए िाजार में खपत के बलए माहौल तैयार बकया जाता है. 7 के संपािक आशुतोष ने कुछ समय पहले एक अखिार में छपे अपने लेख में लोगों के बलए इसकी और कोई िासंबगकता नहीं है.’ टीआरपी की व्यिथथा को फौरन िंि करने की मांग की है. 'तहलका' से िातचीत टैम के िबरठ‍ उपाध्यक्ष (कम्यूबनकेशस) बसध‍ाथर् मुखजीर् ‘तहलका’ से िातचीत ं में िे कहते हैं, 'टीआरपी की पूरी व्यिथथा िोषपूणर् और अिैज्ाबनक है. इसमें न तो में थिीकार करते हैं बक टैम की शुरुआत बिज्ापनिाताओं को ध्यान में रखकर की हर तिके की भागीिारी है और न ही हर क्षेि की. लोगों की िय क्षमता को ध्यान गई थी. 'हमें कहा गया था बक हम ये िताएं बकस कायर्िम को बकतना िेखा जाता में रखकर टीआरपी के मीटर लगाए गए हैं और ऐसे में बिकास की िौड़ में अि है ताबक इसके आधार पर बिज्ापनिाता अपनी रणनीबत तय कर सकें. इसबलए तक पीछे रहे लोगों और क्षेिों की उपेक्षा हो रही है. खिरों और खास तौर पर बहंिी हम यह िािा नहीं करते बक हम िशर्कों के बलए काम करते हैं. हमारा आम आिमी समाचार चैनलों में खिरों के भटकाि के बलए सिसे अबधक बजम्मेिार टीआरपी से कोई लेना-िेना नहीं है.’ बसध‍ाथर् कहते हैं, ‘टैम के आंकड़ों में तो टेलीबिजन है. अच्छी खिरों की टीआरपी नहीं है. कोई चैनल बकसी िड़ी अंतररा£‍ीय खिर और बिज्ापन उयोग से जुड़े लोगों और शोध करने िालों को ही बिलचथपी रखनी को बिखा रहा हो या बफर रा£‍ीय महत्ि की बकसी खिर को उठा रहा हो, उसकी चाबहए. िूसरों की बिलचथपी का कारण मुझे समझ में नहीं आता. हमारा काम टीआरपी नहीं आती. भूत-िेत बिखाने िाले चैनल की अच्छी टीआरपी आ जाती मीटर िाले घरों में िेखे जाने िाले चैनलों की जानकारी एकबित करना और उसके है.' िकौल आशुतोष, 'एक अिना-सा लड़का भी जानता है बक टीिी में तीन सी, आधार पर रेबटंग तैयार करना है. इसके िाि हम ये आंकड़े बिज्ापन एजेंबसयों और यानी बिकेट, िाइम और बसनेमा बिकता है और िथतुतीकरण बजतना सनसनीखेज टेलीबिजन चैनलों को िे िेते हैं. यहीं हमारा काम खत्म हो जाता है. हमने समाचार होगा उतनी ही टीआरपी टूटगी. और टीआरपी माने बिज्ापन, बिज्ापन माने पैसा, े चैनलों से कभी नहीं कहा बक हमारी रेबटंग की िजह से आप अपनी सामग्री में पैसा माने िॉबफट, िॉबफट माने िाजार में जलिा. बजस हफ्ते टीआरपी बगर जाती ििलाि कर िीबजए.’ है उस हफ्ते एबडटर को नींि नहीं आती, उसको अपनी नौकरी जाती हुई नजर 607 250 13.8 करोड़ देश में कुल टेलीववजन चैनलों की संख्या नए चैनल खोलने के वलए आवेदन पड़े हैं सूचना भारतीय घरों में पहुंच गया है टेलीववजन और प्रसारण मंत्रालय के पास 15 अक्टूबर 2011 तहलका आवरण कथा 41