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Sukh dukh
- 2. िैं नह ं चाहता चचर-सुख,
िैं नह ं चाहता चचर-दुुःख;
सुख-दुुःख की खेल
मिलौनी,
खोले जीवन अपना िुख!
- 3. सुख-दुुःख के िधुर मिलन से
यह जीवन हो पररपूरन;
फिर घन िें ओंझल हो शमश
फिर शमश से ओंझल हो घन !
- 4. जग पीड़ित है अतत-दुुःख से
जग पीड़ित रे अतत-सुख से;
िानव जग िें बँट जावें
दुुःख-सुख से औ सुख-दुुःख से !
- 5. अववरत दुुःख है उत्पीिन,
अववरत सुख भी उत्पीिन;
दुुःख-सुख की तनशा-ददवा िें
सोता-जागता जग-जीवन !
- 6. यह साँझ उषा का आँगन,
आमलंगन ववरह-मिलन का;
चचर हास-अश्रुिय आनन
रे इस िानव-जीवन का !