3. कमिी थोिे द म की , बहतै आिै क म ।
ख स मिमि ि फ्त , उनकि ि खै म न ।।
उनकि ि खै म न , बुंद जाँह आड़े आिै ।।
बकच ब ाँधे मोट , ि तत को झ रि बबछ िै ।।
कह ' गिरिधि कविि य ' , लमित है थोिे दमिी ।।
सब ददन ि खै स थ ,बड़ी मय ाद कमिी ।। 2 II
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4. शब्द था –
कमिी - क ि क
ुं बि
ख स - उत्तम प्रक ि क
ि फ्त - महाँि िस्त्र
थोिे - थोड़े
द म - कीमत , रुपय -पैस
थोिे द म - कम मूल्य क
बकच - छोटी िठिी
मोट - िठिी , स म न
ि तत - ि त
झ रि - झ ड़कि
थोिे दमिी - कम कीमत में
बड़ी मय ाद - बड़ी क म की चीज़
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5. व्य ख्य - क ि क
ुं बि थोड़े मूल्य में लमि ज त है। इस क
ुं बि क
े
अनेक ि भ हैं। घि में भी औि य र क
े दौि न भी िह बहत क म
आती है I उत्तम प्रक ि क कपड़ , मिमि औि महाँि कपड़ जैसे
कीमती कपड़ों की धूि औि प नी से िक्ष कित है। िैसे ही पिेश नी
पड़ने पि यह क
ुं बि आमजन क सम्म न बन ए िखत है। कीमती
कपड़ों को य स म न को उसमें ब ाँधकि िठिी बन ई ज सकती है I
जजसमें स ि स म न एक ही जिह पि लसमट ज त है औि उसे
आस नी से िे ज य ज सकत है I ि त में विश्र म क
े लिए उसे
झ ड़ कि बबछ य ज सकत है औि आि म से सोय ज सकत है
गिरिधि कविि य कहते हैं कक कम कीमत में लमिने ि िे क
ुं बि को
सदैि अपने प स िखन च दहए क्योंकक यह क
ुं बि बहत उपयोिी
होत है। कमिी बहत सस्त्ती लमि ज ती है उसे हमेश अपने स थ
िखन च दहए क्योंकक इसक
े बहत ि भ हैं I
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6. प्रसुंि - प्रस्त्तत क
ुं डलिय में गिरिधि कविि य ने क
ुं बि
क
े िणों क / उसकी उपयोगित क िणान ककय है।
बकच ब ाँधे मोट , ि तत को झ रि बबछ िै –
यदद ककसी क
े प स क
ुं बि हो , तो उसमें स म न
ब ाँधकि /िखकि छोटी िठिी बन य ज सकत है।
ि त को विश्र म क
े लिए उसे झ ड़कि ओढ़ / बबछ य
ज सकत है।
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7. िन क
े ि हक सहस नि बबन िन िहै न कोय I
जैसे क ि कोककि , शब्द सनै सब कोय II
शब्द सनै सब कोय , कोककि सबै सह िन I
दोऊ को एक िुंि , क ि सब भये अप िन I
कह ' गिरिधि कविि य ', सनो हो ठ कि मन क
े II
बबन िन िहै न कोय , सहस नि ि हक िन क
े II 3 II
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9. व्याख्या - प्रस्त्तत क
ुं डलिय में कवि कहते हैं कक िणी व्यजक्त क हि जिह
सम्म न होत है I अतः हमें अपने अुंदि िणों को बढ़ न च दहए I िणों को
च हने ि िे अनेक िोि हैं पि बबन िणों ि िे व्यजक्त को कोई नहीुं पूछत
यही क िण है कक हम जन्म से ही अच्छे सुंस्त्क ि औि िण अपने अुंदि
विकलसत किने क प्रयत्न किते हैं औि सम ज में सम्म न प ते हैं I कवि
कौआ औि कोयि क दृषट ुंत देकि इस ब त को समझ ने क प्रय स किते
हैं कक कौए औि कोयि की आि ज सभी िोि सनते हैं पि कौए की क ाँि -
क ाँि को कोई पसुंद नहीुं कित अवपत कोयि की मधि क
ू क सभी क
े मन
को भ ती है I दोनों क िुंि भी एक होत है I पिुंत कवि क
े अनस ि कौआ हि
तिह से अपविर है I गिरिधि कविि य कहते हैं कक स्त्ियुं को श्रेषठ समझने
ि िों सनो हम स्त्ियुं पि ककतन भी अलभम न कि िे पि सम ज में कद्र
क
े िि हम िे िणों की होती है रूप िुंि कक नहीुं क्योंकक िण स्त्थ ई होते हैं
औि िुंि रूप नश्िि है I बबन िणों क
े कोई हम ि सम्म न नहीुं कित हमें
नहीुं च हत I िेककन िणी व्यजक्त को च हने ि िे हज िों व्यजक्त हैं I
इसलिए सही कह िय है कक िणों क
े बबन कोई ककसी को नहीुं पूछत पि
िणी क
े अनेक ग्र हक होते हैं I
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10. कौआ औि कोयि में सम नत –
दोनों क िुंि क ि होत है I
कौआ औि कोयि में औि असम नत –
कौिे की ि णी कक
ा श होती है जबकक कोयि की क
ू क
कणावप्रय तथ मधि होती है I
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11. प्रसुंि - प्रस्त्तत क
ुं डलिय क
े िचतयत गिरिधि कविि य हैं I
प्रस्त्तत क
ुं डलिय में कवि बत ते हैं कक सुंस ि में मनषय क
सम्म न िणों क
े क िण ही होत है इस सुंस ि में िणों को
च हने ि िे अनेक िोि हैं िणी व्यजक्त क सभी सम्म न
किते हैं िेककन िणहीन को कोई भी नहीुं च हत उसकी सब
उपेक्ष किते हैं I
कौए औि कोयि क
े उद हिण द्ि ि कवि ने यह स्त्पषट
ककय है कक कोयि ि णी की मधित जैसे िण क
े क िण
सभी क
े द्ि ि पसुंद की ज ती है पिुंत कौआ अपनी कक
ा श
ि णी तथ िणहीन होने क
े क िण सम्म न नहीुं प त है I
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12. स ाँई सब सुंस ि में मतिब क व्यिह ि I
जब िि पैस ि ाँठ में , तब िि त को य ि II
तब िि त को य ि , य ि सुंि ही सुंि डोिे I
पैस िहे न प स य ि मख से नदहुं बोिे I
कह ' गिरिधि कविि य ' जित यदह िेख भ ई I
कित बेििजी प्रीतत , य ि बबिि कोई स ाँई II 4 II
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13. शब्द था –
1) मतिब - स्त्ि था
2) व्यिह ि - बत ाि
3) ि ाँठ - जेब
4) य ि - दोस्त्त
5) डोिे -घूमे
6) िेख - िीत
7) बेििजी - बबन स्त्ि था क
े
8) प्रीतत - प्रेम
9) बबिि - कोई-कोई , बहतों में कोई एक
Sunday, July 25, 2021 13
14. कवि ने इस क
ुं डलिय में इस सुंस ि की िीत बत ते हए
कह है कक यह ाँ प्रत्येक व्यजक्त अपने स्त्ि था क
े दहस ब से
ही व्यिह ि कित है I यह ाँ हि व्यजक्त स्त्ि थी है I जब
तक जेब में पैसे हैं तब तक लमर एक पि क
े लिए भी
स थ नहीुं छोड़ते िेककन धन - दौित सम प्त होते ही
उनकी लमरत भी सम प्त हो ज ती है औि िे अच्छी तिह
से ब त तक नहीुं किते हैं I देखते ही माँह फ
े ि िेते हैं I
कवि कहते हैं कक इस सुंस ि क यही तनयम है यह ाँ सभी
स्त्ि था पूणा व्यिह ि किते हैं I इस सुंस ि में ऐसे व्यजक्त
बहत कम है जो बबन स्त्ि था क
े लमरत किते हैं , बबन
स्त्ि था क
े सबक
े स थ प्रेम पूणा व्यिह ि किते हैं I
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15. प्रसुंि - गिरिधि कविि य क
े अनस ि इस सुंस ि में स्त्ि था क
े व्यिह ि की िीत है अथ ात
इस सुंस ि में िोि एक दूसिे से अपने मतिब क
े लिए ब त किते हैं I
कवि ने अपने कथन क
े समथान में लमरत क दृषट ुंत ददय है I इस सुंस ि में लमरत
क आध ि रुपय - पैस , धन - दौित है I जब तक ककसी व्यजक्त क
े प स धन-दौित
, रुपय - पैस प्रचि म र में होत है तब तक उसक
े अनेक लमर होते हैं I उसक
े
आसप स घूमते कफिते हैं I पिुंत जैसे ही उसक धन सम प्त हो ज त है सभी लमर
उससे ककन ि कि िेते हैं तथ उससे अच्छे से नहीुं बोिते हैं I
' बबिि ' शब्द क प्रयोि कवि ने तन:स्त्ि था लमरत किने ि िे िोिों क
े लिए ककय है |
सुंस ि में बबन ककसी स्त्ि था क
े ककसी से लमरत किने ि िे िोि कम ही लमिते हैं |
बबििे ही लमिते हैं |
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16. िदहए िटपट क दट ददन , बरु घ मे म ाँ सोय |
छ ाँह न ब की बैदठये , जो तरु पतरु होय ||
जो तरु पतरु होय , एक ददन धोख देहैं |
ज ददन बहै बय रि , टूदट तब जड़ से जैहैं ||
कह गििधि कविि य , छ ाँह मोटे की िदहए |
प ती सब झरि ज याँ , तऊ छ य में िदहए ||5||
Sunday, July 25, 2021 16
17. शब्द था –
1) िटपट - गििते - पड़ते, ककसी तिह
2) बरु - भिे ही
3) घ मे - धूप में
4) पतिो - पति , कमज़ोि
5) जि - जड़
6) प ती - पवत्तय ाँ
7) तऊ - तब भी
8) जैहैं - ज एि
9) िदहए - पकड़ड़ए , ग्रहण कीजजए
10) झरि – झड़न
11) छ ाँह - छ य
12) ब की - उसकी
13) तरु - पेड़
14) बय रि - हि
Sunday, July 25, 2021 17
18. Sunday, July 25, 2021 18
प्रस्त्तत क
ुं डलिय में कवि पेड़ क
े उद हिण से यह समझ न च हते हैं कक हमें
समथा क आश्रय िेन च दहए अथ ात सबि व्यजक्त क सह ि िेन च दहए
I तनबाि व्यजक्त मसीबत आने पि अपने ही िक्ष नहीुं कि प एि I कफि िह
हम िी सिक्ष क
ै से कि सक
े ि ? सफि व्यजक्त अनेक कषट झेि कि भी
सिक्षक्षत िहत है औि उसक
े सह िे हम भी सिक्षक्षत िहेंिे I
19. Sunday, July 25, 2021 19
कविि य क
े अनस ि जीिन में सख दख सहते हए ककसी भी प्रक ि जीिन
व्यतीत कि िीजजए च हे धूप में सो िीजजए पि उस पेड़ की छ य में कभी
नहीुं बैठन च दहए जो पति य कमजोि हो I क्योंकक ऐसे पेड़ की छ य में
बैठने से खति है I यह पेड़ एक ददन अिश्य ही धोख देि I जजस ददन
तेज हि चिेिी िह जड़ से उखड़ ज एि , िह पेड़ भी टूट ज एि औि
ह तन पहाँच सकत है I मोटे पेड़ की छ य घनी होती है तथ मोटे तने
ि ि पेड़ आाँधी आने पि गिित नहीुं है , उसक
े नीचे बैठे िहने ि िे
व्यजक्त क जीिन सिक्षक्षत िहत है I पति पेड़ हमें कभी भी धोख दे
सकत है I पतिे पेड़ की छ य भी घनी नहीुं होती है I स थ ही जैसे ही
तेज हि चिने ििती है उसक
े धि श यी होने क खति िहत है I उसक
े
नीचे बैठे िोिों क जीिन खतिे में पड़ ज त है I
20. ि ज क
े दिब ि में , जैये समय प य I
स ईं तह ाँ न बैदठए , जहाँ कोउ देय उठ य II
जहाँ कोउ देय उठ य , बोि अनबोिे िदहए I
हाँलसये नहीुं हह य , ब त पूछे ते कदहए II
कह ' गििधि कविि य ' समय सों कीजै क ज I
अतत आति नदह होय , बहरि अनखैहैं ि ज II 7II
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21. शब्द था -
1) समय - समय पि
2) कोउ - कोई
3) देय - देन
4) स ाँईं - स्त्ि मी
5) अनबोिे - बबन बोिे / चप
6) हह य - ह - ह किन
7) कीजै - किन
8) क ज - क या
9) आति - व्य कि , बेचैन
10) तह ाँ - उस जिह , िह ाँ
11) बहरि - बहत
12) अनखैहैं - बि म नते हैं , न ि ज़ होते हैं
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22. प्रस्त्तत क
ुं डलिय में कवि जनस ध िण को ि जदिब ि क
े तनयमों से अिित कि
िहे हैं I हमें अपने व्यिह ि को श िीनत से यक्त बन न च दहए I
ि ज क
े दिब ि में अिसि लमिने पि उपयक्त समय में ही जIन च दहए I हमें
अपने स्त्ति क
े अनस ि ही स्त्थ न ग्रहण किन च दहए I कभी ऐसे स्त्थ न पि नहीुं
बैठन च दहए जह ाँ से कोई उठ दे I यदद अज्ञ निश ऐसी जिह पि बैठ ज ओ
जह ाँ से कोई उठ दे तो ििती को चपच प स्त्िीक ि कि िेन च दहए I ि ज क
े
दिब ि क
े तनयम होते हैं उनक प िन किन च दहए I िह ाँ ज़ोि - ज़ोि से हाँसन
नहीुं च दहए I जब कोई ब त पूछी ज ए तब उसक उत्ति देन च दहए यही नम्रत
है I कवि कहते हैं कक अगधक उत िि नहीुं होन च दहए I क म समय आने पि
ही होि I समय आने पि ि ज अिश्य ही हम िी ओि ध्य न देंिे औि हम िी
समस्त्य को सनेंिे I अन्यथ ि ज क
े क्रोध क प र बनन पड़ेि , ि ज न ि ज़
भी हो सकते हैं I
Sunday, July 25, 2021 22