कहाँ जा रहे हैं हम? क्यूँ जा रहे हैं हम; अंधे, बहरे और गूंगों की तरह लोगों के कदम में कदम मिला कर, पीछे-पीछे चलते हुए? मेरे घर में इस बात की कमी है, समाज में ये बहुत बड़ा रोग है, ये लोग देश के लिए अभिशाप हैं- सिर्फ बातें और बातें. आग से भरी हुई, विष का बीज बोती, थोड़ी सच और थोड़ी झूठ बातें. मैं नारी के साथ हूँ, तुम नहीं हो; कभी कोई पुरुष इस तरह के सवाल उठता है तो कभी महिलाएं. मैं पूछता हूँ, क्या आपको नहीं लगता की नारी शशक्तिकरण की चाह में हमने एक इंसानों की एक नयी जमात तैयार कर ली है, जिसे एक दुसरे से प्यार नहीं, घृणा है?