1. इंतज़ार (१)
मैने …
बािरश का इंतज़ार िकया
िक इनदधनुष देख सकू…
लेिकन
जाते जाते बािरश ने
मुझसे मेरी नज़र छीन ली ....|
इंतज़ार (२)
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दुिनया की रफ़तार कभी नही थमती
चाहे आसमान बरसे या आँखे
तो मैने भी छलकते हये आँसू थाम िलये
उनहे अब सीप के खुले मुह का इंतज़ार है....||
इंतज़ार (३)
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ये बािरश बरसो की दुिखयारन है
जो अपना दुखड़ा सुनाने बैठ गयी है
और अब तभी उठेगी
जब सुनने वाले सदा के िलए उठ जायेगे...
बािरश मेरे हदय की सूखी िमटी को गीला कर देती है
लेिकन लगातार बािरश मे ये िमटी दलदल बन जाती है
भीतर की िमटी
अब मिनहािरन धूप के इंतज़ार मे है
जो अपनी चटख आवाज लगाकर गलीयो मे दािखल होगी
और उसकी जादुई गठिरयो से िनकलकर
चमकीली चूिड़याँ िबदी फु दने िबखर जायेगे ...
बािरश बाहर बरसती है
िवरहन भीतर बरसती है
और धूप की मिनहािरन दोनो के गीलेपन को इतना सुखा डालती है
िक वे इतिमनान से दुबारा गीली हो सके ...