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अभिमान और विनम्रता
एक बार नदी की अपने पानी क
े प्रचंड प्रिाह पर बहुत घमंड हो गया ! नदी को लगा मुझ
मैं इतनी ताकत हैं ! मैं पहाड़ , पशु , पेड , मानि , आदद सिी को अपने िाि में बाहा
कर ले जा सकती हूँ ! एक ददन नदी ने बड़े गबब क
े अंदाज में , समुन्द्र से कहा बताओ मैं
तुम्हारे भलए क्या लाऊ
ं ? मकान , बस्ती, पशु , मानि , पहाड़ , पेड़ जो तुम चाहो उसे में
उखाड़ क
े ला सकती हूँ !
समुन्द्र समझ गया की नदी को ‘ अहंकार ‘ हों गया हैं ! उसने नदी को कहा यदद तुम मेरे
भलये क
ु छ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी ‘ घास “ उखाड़ क
े ले आना !
नदी ने कहा बस इतनी सी बात अिी लेकर आती हूँ !
नदी ने अपने जल का परा ज़ोर लगा ददया पर घास नहीं उखड़ी ! नदी ने कई बार ज़ोर
लगाया , लेककन उसे हए बार असफलता ही हाथ आई !
आखखर में नदी समुन्द्र क
े पास गयी और बोली ! मैं पेड़ , पहाड़ , मकान आदद तो उखाड़
कर ला सकती हूँ ! मगर जब िी “ घास “ उखाड़ने क
े भलये जोर लगाती हूँ “घास “ जमीन
पर नीचे झुक जाती हैं ! और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर कर आ जाती हूँ !
समुन्द्र ने नदी की परी बात सुनी और मुस्क
ु राते हुये आए बोला जों पहाड़ ,पैड , मकान “
कठोर ” होते हैं ! िह आसानी से उखड जाते हैं !
ककन्द्तु घास जैसी “ विनम्रता “ जजसमे हैं ! उसे प्रचंड आूँधी , तफान , या प्रचंड िेग िी
उखाड़ नहीं सकती हैं !
जीिन में खुशीयों का अथब हैं ...... लड़ाई नहीं , बजकक उन लडाइयों से िी बचना हैं !
क
ु शलता पिबक पीछे हटना िी अपने आप में एक जीत हैं !
ककयों की “ अभिमान “ फररश्तों को िी शैतान बना देता हैं !
और विनम्रता “ साधारण “ व्यजक्त “ को िी फररश्ता बना देता हैं !!
धन्द्यबाद
िीरेंर श्रीिास्ति
23/09/2020

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Abhimanअभिमान और नम्रता

  • 1. अभिमान और विनम्रता एक बार नदी की अपने पानी क े प्रचंड प्रिाह पर बहुत घमंड हो गया ! नदी को लगा मुझ मैं इतनी ताकत हैं ! मैं पहाड़ , पशु , पेड , मानि , आदद सिी को अपने िाि में बाहा कर ले जा सकती हूँ ! एक ददन नदी ने बड़े गबब क े अंदाज में , समुन्द्र से कहा बताओ मैं तुम्हारे भलए क्या लाऊ ं ? मकान , बस्ती, पशु , मानि , पहाड़ , पेड़ जो तुम चाहो उसे में उखाड़ क े ला सकती हूँ ! समुन्द्र समझ गया की नदी को ‘ अहंकार ‘ हों गया हैं ! उसने नदी को कहा यदद तुम मेरे भलये क ु छ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी ‘ घास “ उखाड़ क े ले आना ! नदी ने कहा बस इतनी सी बात अिी लेकर आती हूँ ! नदी ने अपने जल का परा ज़ोर लगा ददया पर घास नहीं उखड़ी ! नदी ने कई बार ज़ोर लगाया , लेककन उसे हए बार असफलता ही हाथ आई ! आखखर में नदी समुन्द्र क े पास गयी और बोली ! मैं पेड़ , पहाड़ , मकान आदद तो उखाड़ कर ला सकती हूँ ! मगर जब िी “ घास “ उखाड़ने क े भलये जोर लगाती हूँ “घास “ जमीन पर नीचे झुक जाती हैं ! और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर कर आ जाती हूँ ! समुन्द्र ने नदी की परी बात सुनी और मुस्क ु राते हुये आए बोला जों पहाड़ ,पैड , मकान “ कठोर ” होते हैं ! िह आसानी से उखड जाते हैं ! ककन्द्तु घास जैसी “ विनम्रता “ जजसमे हैं ! उसे प्रचंड आूँधी , तफान , या प्रचंड िेग िी उखाड़ नहीं सकती हैं ! जीिन में खुशीयों का अथब हैं ...... लड़ाई नहीं , बजकक उन लडाइयों से िी बचना हैं ! क ु शलता पिबक पीछे हटना िी अपने आप में एक जीत हैं ! ककयों की “ अभिमान “ फररश्तों को िी शैतान बना देता हैं ! और विनम्रता “ साधारण “ व्यजक्त “ को िी फररश्ता बना देता हैं !! धन्द्यबाद िीरेंर श्रीिास्ति