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कक्षा अष्टमी कृ ते
शब्दार्थः सन्धिच्छेदः
गुणज्ञेषु गुणवानों में
ननगुथणं गुणहीनों को
प्राप्य पाकर ननगुथणाः ननः +गुणाः
सुस्वादुतोयाः स्वाददष्ट पानी समुद्रमासा
द्य
समुद्रम ्
+आसाद्य
भवध्यपेयाः न पीने योग्य भवध्यपेयाः भवन्धत
+अपेयाः
सरलार्थः – गुण गुणवानों में गुण होता है परन्तु ननगुथण को पाकर वही गुण दोष
बन जाता है ठीक उसी प्रकार जैसे नददय ॉं स्वादयुक्त जल पैदा करती हैं परन्तु समुद्र में
पहुच कर वह स्वाददष्ट जल स्वादववहीन (खारा) हो जाता है/
7/5/2015 2
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
गुणा गुणज्ञेषु गणाः भवन्न्त
ते ननगथणॉं
प्राप्य भवन्न्त दोषाः
सुस्वादुतोयाः
प्रभवन्न्त नद्यः
समुद्रमासाद्य
भवन््यपेयाः // १ //
7/5/2015 3
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
सादह्य संगीत कलाववहीनः
साक्षा्पशुः पुच्छववषाणहीनः
तृणं न खादधनवप जीवमानः
तद्भाग्िेयं परं पशूनाम् //2//
7/5/2015 4
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
शब्दार्थः सन्धिच्छेदः
ववहीनः रदहत खादधनवप खादत् +अवप
पुच्छववषाणही
नः
पूछ और सींग से
रदहत
न खादधनवप न खाता हुआ
सरलार्थ- सादह्य, सॉंगीत और कला से रदहत व्यन्क्त सीॉंग
और पॅूछ से रदहत साक्षात ् पशु के समान है/ पृथ्वी पर
जीववत रहकर वह व्यन्क्त घास नही खाता जो पशुओॉं का
परम सौभाग्य है /
7/5/2015 5
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लुब्धस्य नश्यनत यशः वपशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कु लमर्थपरस्य धमथः /
ववद्याफलॉं व्यसनननः कृ पणस्य सौख्यॉं
राज्यॉं प्रम्तसचचवस्य नराचधपस्य //
सरलार्थ- लोभी (लालची) का यश नष्ट हो जाता है,
चुगुलखोर की ममत्रता, क्रिया को नष्ट करने वाले का
वॉंश, धन के लालची (मतलबी) का धमथ, व्यसन में पड़ने
वाले की ववद्या, मतवाला ( घमण्डी) मन्त्री वाले राजा
का राज्य नष्ट हो जाता है
7/5/2015 6
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
पी्वा रसॉं तु कटुकॉं मधुरॉं समानॉं
माधुयथमेव जनयेन्मधुमक्षक्षकासौ /
सन्तस्तर्ैव समसज्जनदुजथनानाॉं
श्रु्वा वचः मधुरसॅूक्तरसॉं सृजन्न्त //
सरलार्थ- मीठे और कड़वे रसों को समान रूप से पीकर मधुमक्खी न्जस तरह से के वल
मधुरता (शहद) को ही उ्तपन्न करती है ठीक उसी तरह से सज्जन पुरुष् दुष्टो ओैर
सज्जनेाॉं के वाणी को समान रूप से सुन कर के वल मीठे सुन्दर वचनों को ही ननममथत
करता है //
7/5/2015 7
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
शब्दार्थः सन्धिः
कटुकं कड़वा जनयेधमिु
मक्षक्षकासौ
जनयेत ्+मिुम
क्षक्षका+असौ
जनयेधमिु
मक्षक्षकासौ
मिुमक्खी
उ्पधन करे
सधतस्तर्ै
व
सधतः+तर्ा+एव
सधतस्तर्ैव सज्जन लोग
उसी प्रकार से
वपब ्+क््वा पी्वा
सृजन्धत रचना करते हैं श्रु+क््वा श्रु्वा
7/5/2015 8
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सवाई मािोपुर
शब्दार्थः सन्धिः
सैव वह ही सैव स + एव
परैरवप दूसरों के द्वारा भी परैरवप परैः + अवप
लाकृ नतयथर्ा जैसे नौ की संख्या लाकृ नतयथर्ा लृ+आकृ नतः + यर्ा
महताॉं प्रकृ नतः सैव वचधथतानाॉं परैरवप |
न जहानत ननज भावॉं सॉंख्यासु लाकृ नतयथर्ा||
सरलार्थ- दॅूसरों के द्वारा बढाये जाने पर ( प्रशॉंसा क्रकये जाने पर )
महान लोग अपने स्वभाव को उसी तरह नहीॉं छोड़ते जैसे
सॉंख्याओॉं में ९ अपनी आकृ नत को नहीॉं छोड़ता |
7/5/2015 9
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
शब्दार्थः सन्धिः
रोचमानायां सुशोभभत होने पर ्वरोचमानायां तु + अरोचमानायाम ्
रोचते अच्छा लगता है
न्स्त्रयाॉं रोचमानायाॉं सवं तद् रोचते कु लम्/
तस्याॉं ्वरोचमानायाॉं सवथमेव न रोचते //
सरलार्थ- पररवार के सम्पॅूण्थ व्यवहार में स्त्री की रोचकता पर ( अच्छा लगना
) सम्पॅूणथ पररवार का वातावरण सुखद हो जाता है जबक्रक व्यवहार में स्त्री
की अरोचकता पर पररवार का वातावरण सुन्दर नहीॉं लगता, न्जससेपररवार
की उन्ननत रुक जाती है //
7/5/2015 10
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
१- गुणाः कु त्र गुणाः भवन्न्त ॽ
२- नद्यः कीदृशॉं जलॉं प्रभवन्न्त ॽ
३- समुद्रस्य जलॉं कीदृशॉं भवनत ॽ
४- के पशुममव भवन्न्त ॽ
५- धमथः कस्य नश्यनत ॽ
६- सौख्यॉं कस्य नश्यनत ॽ
७- मधुमक्षक्षका क्रकॉं क्रकॉं वपबनत ॽ
८- सन्तः क्रकॉं सृजन्न्त ॽ
९- कः ननजभावॉं न जहानत ॽ
१०- कु लॉं कर्ॉं रोचते ॽ
7/5/2015 11
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
स्तर १- एकपदेन उ्तरत-
१- गुणाः कु त्र गुणाः भवन्धत ॽ
२- िमथः कस्य नश्यनत ॽ
३- कृ पणस्य ककं नश्यनत ॽ
४- न्स्त्रयां रोचमानायां ककं रोचते
7/5/2015 12
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
स्तर २- पणथवाक्येन उ्तरत –
१- सधतः कीदृशः वचः
सृजन्धत ॽ
२- के पशुभमव भवन्धत
ॽ
३- मिुमक्षक्षका ककं ककं
वपबनत ॽ
४- कु लं कर्ं रोचते ॽ 7/5/2015 13
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
पदानन वाक्यानन
सुस्वादु
तोयाः
पशूना
म्
लुब्ि
स्य
तर्ैव
प्रकृ नतः
7/5/2015 14
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
पररयोजनाकायथम ् -
स्तर १- दशसूक्तीनां संचयं कृ ्वा
भलखत /
स्तर २- पाठेतर
पंचसुभावषतश्लोकानां संचयं कृ ्वा
भलखत /
स्तर ३-दशसूक्तीनां पाठेतर
पंचसुभावषतश्लोकानां च संचयं
कृ ्वा भलखत
7/5/2015 15
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर
िधयवादाः सुधदर
वाचन शोभभतम ्
ककशन गोपाल मीना
प्रभशक्षक्षत स्नातक संस्कृ त
भशक्षक के धद्रीय ववद्यालय
सवै मािोपुर
7/5/2015 16
ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय
सवाई मािोपुर

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सुभाषितानि

  • 2. शब्दार्थः सन्धिच्छेदः गुणज्ञेषु गुणवानों में ननगुथणं गुणहीनों को प्राप्य पाकर ननगुथणाः ननः +गुणाः सुस्वादुतोयाः स्वाददष्ट पानी समुद्रमासा द्य समुद्रम ् +आसाद्य भवध्यपेयाः न पीने योग्य भवध्यपेयाः भवन्धत +अपेयाः सरलार्थः – गुण गुणवानों में गुण होता है परन्तु ननगुथण को पाकर वही गुण दोष बन जाता है ठीक उसी प्रकार जैसे नददय ॉं स्वादयुक्त जल पैदा करती हैं परन्तु समुद्र में पहुच कर वह स्वाददष्ट जल स्वादववहीन (खारा) हो जाता है/ 7/5/2015 2 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 3. गुणा गुणज्ञेषु गणाः भवन्न्त ते ननगथणॉं प्राप्य भवन्न्त दोषाः सुस्वादुतोयाः प्रभवन्न्त नद्यः समुद्रमासाद्य भवन््यपेयाः // १ // 7/5/2015 3 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 4. सादह्य संगीत कलाववहीनः साक्षा्पशुः पुच्छववषाणहीनः तृणं न खादधनवप जीवमानः तद्भाग्िेयं परं पशूनाम् //2// 7/5/2015 4 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 5. शब्दार्थः सन्धिच्छेदः ववहीनः रदहत खादधनवप खादत् +अवप पुच्छववषाणही नः पूछ और सींग से रदहत न खादधनवप न खाता हुआ सरलार्थ- सादह्य, सॉंगीत और कला से रदहत व्यन्क्त सीॉंग और पॅूछ से रदहत साक्षात ् पशु के समान है/ पृथ्वी पर जीववत रहकर वह व्यन्क्त घास नही खाता जो पशुओॉं का परम सौभाग्य है / 7/5/2015 5 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 6. लुब्धस्य नश्यनत यशः वपशुनस्य मैत्री नष्टक्रियस्य कु लमर्थपरस्य धमथः / ववद्याफलॉं व्यसनननः कृ पणस्य सौख्यॉं राज्यॉं प्रम्तसचचवस्य नराचधपस्य // सरलार्थ- लोभी (लालची) का यश नष्ट हो जाता है, चुगुलखोर की ममत्रता, क्रिया को नष्ट करने वाले का वॉंश, धन के लालची (मतलबी) का धमथ, व्यसन में पड़ने वाले की ववद्या, मतवाला ( घमण्डी) मन्त्री वाले राजा का राज्य नष्ट हो जाता है 7/5/2015 6 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 7. पी्वा रसॉं तु कटुकॉं मधुरॉं समानॉं माधुयथमेव जनयेन्मधुमक्षक्षकासौ / सन्तस्तर्ैव समसज्जनदुजथनानाॉं श्रु्वा वचः मधुरसॅूक्तरसॉं सृजन्न्त // सरलार्थ- मीठे और कड़वे रसों को समान रूप से पीकर मधुमक्खी न्जस तरह से के वल मधुरता (शहद) को ही उ्तपन्न करती है ठीक उसी तरह से सज्जन पुरुष् दुष्टो ओैर सज्जनेाॉं के वाणी को समान रूप से सुन कर के वल मीठे सुन्दर वचनों को ही ननममथत करता है // 7/5/2015 7 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 8. शब्दार्थः सन्धिः कटुकं कड़वा जनयेधमिु मक्षक्षकासौ जनयेत ्+मिुम क्षक्षका+असौ जनयेधमिु मक्षक्षकासौ मिुमक्खी उ्पधन करे सधतस्तर्ै व सधतः+तर्ा+एव सधतस्तर्ैव सज्जन लोग उसी प्रकार से वपब ्+क््वा पी्वा सृजन्धत रचना करते हैं श्रु+क््वा श्रु्वा 7/5/2015 8 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 9. शब्दार्थः सन्धिः सैव वह ही सैव स + एव परैरवप दूसरों के द्वारा भी परैरवप परैः + अवप लाकृ नतयथर्ा जैसे नौ की संख्या लाकृ नतयथर्ा लृ+आकृ नतः + यर्ा महताॉं प्रकृ नतः सैव वचधथतानाॉं परैरवप | न जहानत ननज भावॉं सॉंख्यासु लाकृ नतयथर्ा|| सरलार्थ- दॅूसरों के द्वारा बढाये जाने पर ( प्रशॉंसा क्रकये जाने पर ) महान लोग अपने स्वभाव को उसी तरह नहीॉं छोड़ते जैसे सॉंख्याओॉं में ९ अपनी आकृ नत को नहीॉं छोड़ता | 7/5/2015 9 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 10. शब्दार्थः सन्धिः रोचमानायां सुशोभभत होने पर ्वरोचमानायां तु + अरोचमानायाम ् रोचते अच्छा लगता है न्स्त्रयाॉं रोचमानायाॉं सवं तद् रोचते कु लम्/ तस्याॉं ्वरोचमानायाॉं सवथमेव न रोचते // सरलार्थ- पररवार के सम्पॅूण्थ व्यवहार में स्त्री की रोचकता पर ( अच्छा लगना ) सम्पॅूणथ पररवार का वातावरण सुखद हो जाता है जबक्रक व्यवहार में स्त्री की अरोचकता पर पररवार का वातावरण सुन्दर नहीॉं लगता, न्जससेपररवार की उन्ननत रुक जाती है // 7/5/2015 10 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 11. १- गुणाः कु त्र गुणाः भवन्न्त ॽ २- नद्यः कीदृशॉं जलॉं प्रभवन्न्त ॽ ३- समुद्रस्य जलॉं कीदृशॉं भवनत ॽ ४- के पशुममव भवन्न्त ॽ ५- धमथः कस्य नश्यनत ॽ ६- सौख्यॉं कस्य नश्यनत ॽ ७- मधुमक्षक्षका क्रकॉं क्रकॉं वपबनत ॽ ८- सन्तः क्रकॉं सृजन्न्त ॽ ९- कः ननजभावॉं न जहानत ॽ १०- कु लॉं कर्ॉं रोचते ॽ 7/5/2015 11 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 12. स्तर १- एकपदेन उ्तरत- १- गुणाः कु त्र गुणाः भवन्धत ॽ २- िमथः कस्य नश्यनत ॽ ३- कृ पणस्य ककं नश्यनत ॽ ४- न्स्त्रयां रोचमानायां ककं रोचते 7/5/2015 12 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 13. स्तर २- पणथवाक्येन उ्तरत – १- सधतः कीदृशः वचः सृजन्धत ॽ २- के पशुभमव भवन्धत ॽ ३- मिुमक्षक्षका ककं ककं वपबनत ॽ ४- कु लं कर्ं रोचते ॽ 7/5/2015 13 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 14. पदानन वाक्यानन सुस्वादु तोयाः पशूना म् लुब्ि स्य तर्ैव प्रकृ नतः 7/5/2015 14 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 15. पररयोजनाकायथम ् - स्तर १- दशसूक्तीनां संचयं कृ ्वा भलखत / स्तर २- पाठेतर पंचसुभावषतश्लोकानां संचयं कृ ्वा भलखत / स्तर ३-दशसूक्तीनां पाठेतर पंचसुभावषतश्लोकानां च संचयं कृ ्वा भलखत 7/5/2015 15 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर
  • 16. िधयवादाः सुधदर वाचन शोभभतम ् ककशन गोपाल मीना प्रभशक्षक्षत स्नातक संस्कृ त भशक्षक के धद्रीय ववद्यालय सवै मािोपुर 7/5/2015 16 ककशन गोपाल मीना कें द्रीय ववद्यालय सवाई मािोपुर