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आवरण कथा


       2003-04 में िसार भारती ने टैम से मीटरों की संयया िढ़ाने का अनुरोध बकया
 था, ताबक ग्रामीण िशर्कों को भी किर बकया जा सके. टैम ने एक ही घर में एक
 से ज्यािा मीटर भी लगा रखे हैं. इस िाित िसार भारती ने कहा था बक बजन घरों
 में िूसरा मीटर है उन्हें हटाकर िैसे घरों में लगाया जाना चाबहए जहां एक भी मीटर
 नहीं है. उस ितत टैम ने ग्रामीण क्षेिों में मीटर लगाने के बलए िूरिशर्न से पौने
 आठ करोड़ रुपये की मांग की थी. िसार भारती ने उस ितत यह कहकर इस िथताि
 को टाल बिया था बक यह खचार् पूरा टेलीबिजन उयोग िहन करे न बक बसफर्
 िूरिशर्न. लेबकन बनजी चैनलों ने इस बिथतार के िबत उत्साह नहीं बिखाया. इस
 िजह से सिसे ज्यािा नुकसान िूरिशर्न का हुआ. िूरिशर्न के कायर्िमों की रेबटंग
 कम हो गई, तयोंबक ग्रामीण क्षेिों में अपेक्षाकृत ज्यािा लोग िूरिशर्न िेखते हैं.

 गांवों में टीआरपी मीटर लगाने के सिाल पर बसध‍ाथर् कहते हैं, ‘अि बिज्ापन
 एजेंबसयां और टेलीबिजन उयोग गांिों के आंकड़े भी मांग रहे हैं, इसबलए हमने
 शुरुआत महारा£‍ के कुछ गांिों से की है. अभी यह योजना िायोबगक थतर पर है.
 60-70 गांिों में अभी हम अध्ययन कर रहे हैं. इसके व्यापक बिथतार में काफी
 ितत लगेगा, तयोंबक गांिों में कई तरह की समथयाएं हैं. कहीं बिजली नहीं है तो            उच्च िगर् के घरों में लगाए जाएं तो जाबहर है बक टीिी कायर्िमों को लेकर उस
 कहीं िोकटेज में काफी उतार-चढ़ाि है. इन समथयाओं के अध्ययन और समाधान                    िगर् की पसंि िेश के आम तिके से थोड़ी अलग होगी ही, लेबकन इसके िािजूि
 के िाि ही गांिों में बिथतार के िारे में ठोस तौर पर टैम कुछ िता सकती है.’             टीआरपी की मौजूिा व्यिथथा में उसे ही सिकी पसंि िता बिया जाता है और
     टीआरपी मीटर लगाने में न बसफर् शहरी और ग्रामीण खाई है िबकक िगर् बिभेि             इसी के आधार पर उस तरह के कायर्िमों की िाढ़ टीिी पर आ जाती है.
 भी साफ बिखता है. अभी ज्यािातर मीटर उन घरों में लगे हैं जो सामाबजक और                      िबरठ‍ पिकार और हाल तक भारतीय िेस पबरषि के सिथय रहे परंजॉय गुहा
 आबथर्क बलहाज से संपन्न कहे जाते हैं. ये मीटर आबथर्क और सामाबजक तौर पर                ठाकुरता कहते हैं, ‘भारत के संबिधान में 22 भाषाओं की िात की गई है. िेश में
 बपछड़े हुए लोगों के घरों में नहीं लगे हैं. हालांबक, आज टेलीबिजन ऐसे घरों में          जो नोट चलते हैं उनमें 17 भाषाएं होती हैं. ऐसे में आबखर कुछ संभ्रांत िगर् के
 भी हैं. इसका नतीजा यह हो रहा है बक संपन्न तिके की पसंि-नापसंि को हर िगर्             लोगों के यहां टीआरपी मीटर लगाकर उनकी पसंि-नापसंि को पूरे िेश के टीिी
 पर थोप बिया जा रहा है. इसे इस तरह से समझा जा सकता है बक अगर ितसे                     िशर्कों पर थोपना कहां का न्याय है.’ िे कहते हैं, 'टीआरपी की आड़ लेकर चैनल


                                          एनआरएस और आईआरएस के सबक
 वजस तरह से टीिी के िशर्कों की संयया का                  के बलए यह सिवेक्षण करने िाली एजेंसी बसफर्            आईआरएस को अंजाम िेते हैं. इसके आंकड़े हर
 अंिाजा टीआरपी के जबरए लगाया जाता है, उसी                संिंबधत िकाशन से बमलने िाले िसार आंकड़े पर            तीन महीने पर आते हैं. इसमें भी आंकड़ों की जांच
 तरह बिंट मीबडया में पाठकों की संयया का अंिाजा           यकीन नहीं करती िबकक इसकी जांच के बलए                 कई थतरों पर की जाती है. इसके िाि एक तकनीकी
 लगाने के िो पैमाने हैं. पहला, नैशनल रीडरबशप सिवे        समय-समय पर बिंबटंग िेस और पि-पबिकाओं के              सबमबत आंकड़ों की जांच करती है. कई थतरों पर
 (एनआरएस) और िूसरा इंबडयन रीडरबशप सिवे                   िसार के बलए िने थटैंड पर भी औचक बनरीक्षण             जांच होने के िाि जि आंकड़े सही होने की पुबट‍ हो
 (आईआरएस). हालांबक इन सिवेक्षणों पर भी कभी-              करती है. इसके अलािा जो भी िकाशक एनआरएस               जाती है तो बफर उन्हें जारी बकया जाता है. तकनीकी
 कभार सिाल उठे हैं, लेबकन पारिबशर्ता और िसार             के सिवे में शाबमल होने की सहमबत िेते हैं उन्हें      सबमबत में िकाशकों का कोई िबतबनबध शाबमल नहीं
 के िािों की जांच के बलए बिबभन्न थतरों पर बकए            बलबखत में यह िािा करना होता है बक एनआरएस             होता ताबक बहतों का टकराि न हो.
 गए िंिोिथत से इनकी काफी बिकिसनीयता भी है.               के िबतबनबध कभी भी संिंबधत िकाशन में िसार से              उधर, टीआरपी जारी करने िाली एजेंसी टैम
     एनआरएस ऑबडट ब्यूरो ऑफ सकुर्लेशन                     जुड़े िथतािेजों की जांच कर सकते हैं. 15,000 से        मीबडया बरसचर् के सिवेक्षण में न तो आईआरएस और
 (एिीसी) का सिवे है बजसे नेशनल रीडरबशप थटडीज             अबधक िसार िाले हर िकाशन में साल में कम से            एनआरएस की तरह पारिबशर्ता है और न ही
 काउंबसल (एनआरएससी) अंजाम िेती है. इसे                   कम एक िार औचक बनरीक्षण जरूर बकया जाता है.            आंकड़ों की जांच िार-िार करने की कोई व्यिथथा.
 एडिरटाइबजंग एसोबसएशन ऑफ इंबडया                              िहीं आईआरएस को मीबडया बरसचर् यूजर                यही िजह है बक टीआरपी के आंकड़ों की
 (एएएआई) का सहयोग हाबसल है. एनआरएस के                    काउंबसल (एमआरयूसी) अंजाम िेती है. 1995 से            बिकिसनीयता कम है और बिंट के िसार के आंकड़ों
 आंकड़े हर छह महीने में आते हैं. यह एजेंसी जो             शुरू हुए आईआरएस में भी िकाशक, बिज्ापनिाता            को अि भी इसके मुकािले अबधक बिकिसनीय
 आंकड़े एकबित करती है उसकी जांच िूसरी थितंि               और बिज्ापन एजेंबसयां शाबमल हैं. 2003 तक यह           माना जाता है. जानकार मानते हैं बक बिकिसनीयता
 एजेंसी करती है. इसके िाि इन आंकड़ों को जारी              एजेंसी बिबभन्न सिवेक्षण एजेंबसयों के साथ बमलकर       के बलए टैम को भी एनआरएस और आईआरएस
 बकया जाता है और िकाशक सिथयों को एक िमाण                 काम करती थी, पर 2003 में इसने हंस बरसचर् ग्रुप के    की तजर् पर पारिबशर्ता िढ़ाने और आंकड़ों को कई
 पि बिया जाता है. िसार का सही-सही पता लगाने              साथ गठजोड़ कर बलया. अि ये िोनों बमलकर                 थतरों पर जांचने का िंिोिथत करना चाबहए.


44   आवरण कथा                                                                                                                       तहलका 15 अक्टूबर 2011

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