1. शिक्षा ,शिक्षक और हम
हमें शिक्षा ,शिक्षक और हम के बारे में समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है कयूंकक शिक्षा ,
शिक्षक और हमारा मतलब ही बदलता सा प्रतीत हो रहा है ।
शिक्षा का मतलब शसर्ण ककताबी जानकारी देना ही नहीं है,
जानकारी और तकनीकी गुर का अपना महत्व है |
लेककन बौद्धिक झुकाव और लोकतांत्रिक भावना का भी महत्व है |
इन भावनाओंके साथ छाि उत्तरदायी नागररक बनते हैं|
जब तक शिक्षक ,शिक्षा के प्रतत समर्पणत और प्रततबद्ि नहीं होगा
तब तक शिक्षा को अपना उद्देश्य नहीं शमल पायेगा |
हमारी संस्कृ तत में
शिक्षक और गुरु का दजाण तो भगवान से भी ऊपर माना गया है |
लेककन
आज का गुरु, गुरु कहलाने लायक है ? इस पर प्रश्नधिह्न हैं|
ककतने ही गुरु ऐसे हैं| जजन पर तिनौने अपरािों के आरोप लगे हुए हैं |
शिक्षक भी गुरु के पद से तो उतर ही िुका है
अब वह शिक्षक भी रह पाएगा इसमें संदेह है
पररर्ाम ये हुआ है कक
आज न तो छािों के शलए कोई शिक्षक
उनका आदणि , उनका मागणदिणक गुरू और जीवनभर की प्रेरर्ा बन पाता है
और न ही शिक्षक बनने को उत्सुक भी हैं |
बही तिसी र्पटी शिक्षा प्रर्ाली को उम्र भर खुद ढोता है
और छािों की पीठ पर लादता हुआ|
एक शिक्षक
अब इस आस में कभी नहीं रहता कक उसका कोई छाि
देि और समाज के तनमाणर् में कोई बडी सकारात्मक भूशमका तनभाएगा |
सवाल ये कक इन सब के शलए कौन जजम्मेदार है ?
शिक्षक , शिक्षा ब्यबस्था या समाज |
शिक्षक को ककस सम्मान से देखा जाना िाहहयें?
तो हमारे बच्िों का भत्रबष्य कया होगा?
देि सेबा में उनका ककतना योगदान होगा
और हम ककस हदिा में जा रहें हैं
समझना ज्यादा मुजश्कल नहीं हैं।