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कहाँ जाएँ यह बाघ, संर कण िसफर छलावा.

                 उत्तर प्रदेश के तराई के जंगलो मे बाघो की अच्छी संख्या पाई जाती है. िजसके पीछे इस इलाके मे की
जैव िववधता और बाघो के अनुकूल वातावरण का होना मुख्य कारण है. परन्तु तराई के इन जंगल वाले इलाको मे
लगातार बढ़ रही मानव आबादी के कारण बाघो और मनुष्यो मे जीवन संघष र बढ़ता जा रहा है. साथ ही इन इलाको के
बाघो के िलए राष्ट्रीय स्तर और प्रादेिशक स्तर पर संरकण के प्रित गंभीरता का अभाव भी संघष र को बढ़ावा दे रहा है.
जीवन के प्रित बढ़ने वाले इन्ही संघष ो का नतीजा है िक िपछले चार महीनो मे इन तराई के िललाको मे चार बाघो की
मौत हो चुकी है. िजसमे से तीन की मौत पीलीभीत जनपद के जंगल केत मे और एक बाघ की दुधवा टाइगर िरजवर के
केत मे हुई है.
                 मई महीने मे लगातार दो िदन के बीच मरे दो बाघो की मौत की घटना से ही अगर बाघो और आबादी
के संघष र की कहानी को समझे तो तराई के केतो मे बाघो और मनुष्यो मे एक खुली जंग का पता साफ़ लग जाता है. 24
और 25 मई को लगातार पीलीभीत के हिरपुर वन केत के कम्पाटरमेट नंबर दो मे एक-एक बाघ मरने की घटना घिटत
होती है. और इस घटना मे बाघो के मारे जाने के कारण के रूप मे पोस्ट मारतं जांच मे तथ्य यह िनकल कर आता है िक
इन दोनो बाघो की मौत जहर से हुई है. साथ ही बाघो की मौत के कारण मे जो जहर िमलता है वह एक सामान्य
जहरीला कीटनाशक होता है िजसका इस्तेमाल खेतो मे िकसान करते रहे है. वन िवभाग के अिधकारी जब खोज मे
जुटते है तो उन्हे जंगल मे एक पड़वे (भैस का बच्चा) का आधा खाया हुआ शव िमलता है, िजसकी जांच कराने पर इसमे
जहर िमलाकर जानबूझकर जंगल मे रखे जाने की बात पता चलती है. और जब इस मामले की जांच बहुत तीव्रता के
साथ आगे बढती है तब मामले का खुलासा होता है. िजससे यह पता चलता है िक जंगल के पास के गाँव नारोसा के
लोगो की भैस को बाघ िशकार करके मार िदया था. इसी भैस और बाद मे इसके पड़वे के मारे जाने के नुकसान से आहत
और बाघ के हमले से भयभीत लोगो ने बाघ से बदला लेने के िलए मरे हुए पड़वे के मांस मे जहर िमलकर रख िदया
िजसे खाने के बाद बाघ की मौत हो गई.
                 पीलीभीत के तत्कालीन प्रभागीय वनािधकारी वीके िसह बताते है “बगल के ही गाँव के लोगो ने
अपनी भैस चराने के िलए चारे पर दी हुई थी और जंगल के केत मे अच्छा और मुफ्त चरागाह िदखने के कारण चराने
वाले अपनी भैस लेकर वहाँ आ जाते है. अब अगर कोई बाघ के केत मे भैस लेकर आएगा तो िफर बाघ का दोष  तो कहा
जा नही सकता है. बाघ का सबसे पसंदीदा िशकार भी भैस ही होती है. इसके बाद गाँव गाँव वालो ने बकायदा बाघ को
मारने के िलए अिभयान के तहत शव मे मांस िमलकर रख िदया था. अब चूिक बाघ मांस को िनगलता है इसिलए जहर
                                                             ँ
सीधा उसके पेट मे चला गया और उसकी मौत हो गई. पहले बाघ के मरने के बाद संयोग्वाश दूसरे बाघ ने भी वही मांस
खा िलया िजससे अगले ही िदन उसकी भी लाश बरामद हुई थी.” एक केत मे दो बाघ होने की संभावना पर
वनािधकारी ने बताया “हो सकता है दूसरा वाला उसी बाघ का करीबी िरश्तेदार या भाई ही रहा हो िजसका कारण
यह था िक एक केत मे दो नर बाघ नही रहते है.” इस पूरे मामले मे िगरफ्तारी की बात पर वह बताते है “इस मामले मे
तीन ग्रामीणो की िगरफ्तारी हुई है और इनकी जमानत स्थानीय िजला अदालत से खािरज भी हो चुकी है. आरोिपयो मे
एक व्यक्तिक की िगरफ्तारी होना शेष  है. शेष  कायरवाही जारी है.”
                 उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा के साथ सटे तराई के जनपदो बहराइच, लखीमपुर और पीलीभीत मे
करीब 1200 वगर िकलोमीटर के केत घने जंगल से भरे है । इस 1200 िकलोमीटर की वन पट्टी मे कई जगहो पर कई
जगह जंगल का केतफल काफी ज्यादा है और कही काफी सकरे वन केत है. इन्ही वन केतो मे अब इतना ज्यादा आबादी
का दबाव बढ़ता जा रहा है िक जंगलो के िनपट कोने भी मनुष्यो से खाली नही है. दुधवा टाइगर िरजवर जो उत्तर प्रदेश
अपनी तरह का एकमात संरिकत बाघ केत है वहाँ के लीको मे गािड़यो की आवाजाही और लोगो की भरमार ने उस
इलाके को भी जंगल से दूर िकसी शहरी कसबे का रूप प्रदान कर िदया है. इसी दुधवा केत के िकशनपुर वनकेत मे 27
मई को एक बाघ का शव िमलता है िजसका िपछला िहस्सा बुरी तरह से कितग्रस्त होता है और िजसकी मौत स्पष रूप
से िकसी गाडी के टक्कर से होने की जानकारी प्राप होती है. यह कोई पहला मामला नही नही है जब बाघ की मौत िकसी
गाड़ी के टक्कर से दुधवा जैसे बाघ संरिकत केत के अंतगरत हुई. दुधवा के इलाके मे साल दर साल िकसी ना िकसी गाडी के
टक्कर से बाघ की मौत की खबर आती रहती है. दुधवा के िफल्ड िनदेशक से इस मामले पर बात करने की कोिशश की गई
तो उनसे बात ही नही हो सकी. बाघो के िलए संरिकत केतो अगर गािडयां इसी प्रकार चलती रहेगी और बाघो को
मारती रहेगी तो अिधकारी के वल अिधकारी बने बैठे रहेगे तो िफर कै से यह िवलुप होता जीव बच पायेगा.
                  इन तीन घटनाओ के उपरान्त अगस्त महीने मे ही 12 तारीख को िफर उसी पीलीभीत के पूरनपुर रे ज
मे एक और नर बाघ का शव शारदा हरदोई नहर मे िमला. िजसको लेकर िफर बाघ की हत्या की आशंका ही ज्यादा
प्रबल रूप से पता चलती है. अब चूिक बाघ प्राकृत ितक रूप से एक कु शल तैराक होता है जो बाढ़ के दौर मे भी आसानी से
                               ँ
नदी मे तैर लेता है तो उसका नहर मे डू बना एक आश्चर्यरजनक तथ्य लगता है. बाघ की मौत के बारते मे जानकारी लेने
के िलए जब भी पीलीभीत के नए वनािधकारी से संपकर करने की कोिशश की गई वह िकसी ना िकसी मीिटग मे ही
व्यक्तस्त िमले.
                  बाघो की इन चार मौतो से बाघो के संरकण के प्रित हो रही लापरवाही और बाघो के केतो मे लगातार
बढ़ रहे मानवीय हस्तकेप से इस जीव का संरकण मुिश्कल ही होता जा रहा है. वन्य जीवो के िलए काम करने वाली
संस्था डब्लूडब्लूएफ इं िडया के प्रदेश प्रमुख डॉ मुिदत गुपा कहते है “बाघो की मौत मे इनका मनुष्यो के साथ हो रहा
संघष र ही प्रमुख कारण बनता जा रहा है. इसको रोकने के िलए कु छ ठोस कदम उठाने पड़ेगे िजससे मनुष्यो का दखल
बाघ के िलए िचिन्हत केतो मे नही हो”. उत्तर प्रदेश के ताराओ इलाके के यह जंगल बाघो के िलए काफी अनुकूल केत
माने जाते रहे है. यहाँ उनके िलए प्राकृत ितक रूप से वह सारी चीज़े उपलब्ध है जो उनके िवकास के िलए आवश्यक है.
साथ ही वन िवभाग और अन्य संस्थाओ के तमाम सवे मे यह बात िसद भी हो चुकी है ऐसे मे प्रदेश मे बाघो की इस
प्रकार की मौतो को रोकने के िलए कड़े कदम और अिधकािरयो पर उिचत दबाव बनाना आवश्यक है. अगर जंगलो मे
भी गािड़यो और जहर से बाघ मरे गे तो िफर यह बाघ जायेगे कहाँ?

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बाघों की लगातार मौत

  • 1. कहाँ जाएँ यह बाघ, संर कण िसफर छलावा. उत्तर प्रदेश के तराई के जंगलो मे बाघो की अच्छी संख्या पाई जाती है. िजसके पीछे इस इलाके मे की जैव िववधता और बाघो के अनुकूल वातावरण का होना मुख्य कारण है. परन्तु तराई के इन जंगल वाले इलाको मे लगातार बढ़ रही मानव आबादी के कारण बाघो और मनुष्यो मे जीवन संघष र बढ़ता जा रहा है. साथ ही इन इलाको के बाघो के िलए राष्ट्रीय स्तर और प्रादेिशक स्तर पर संरकण के प्रित गंभीरता का अभाव भी संघष र को बढ़ावा दे रहा है. जीवन के प्रित बढ़ने वाले इन्ही संघष ो का नतीजा है िक िपछले चार महीनो मे इन तराई के िललाको मे चार बाघो की मौत हो चुकी है. िजसमे से तीन की मौत पीलीभीत जनपद के जंगल केत मे और एक बाघ की दुधवा टाइगर िरजवर के केत मे हुई है. मई महीने मे लगातार दो िदन के बीच मरे दो बाघो की मौत की घटना से ही अगर बाघो और आबादी के संघष र की कहानी को समझे तो तराई के केतो मे बाघो और मनुष्यो मे एक खुली जंग का पता साफ़ लग जाता है. 24 और 25 मई को लगातार पीलीभीत के हिरपुर वन केत के कम्पाटरमेट नंबर दो मे एक-एक बाघ मरने की घटना घिटत होती है. और इस घटना मे बाघो के मारे जाने के कारण के रूप मे पोस्ट मारतं जांच मे तथ्य यह िनकल कर आता है िक इन दोनो बाघो की मौत जहर से हुई है. साथ ही बाघो की मौत के कारण मे जो जहर िमलता है वह एक सामान्य जहरीला कीटनाशक होता है िजसका इस्तेमाल खेतो मे िकसान करते रहे है. वन िवभाग के अिधकारी जब खोज मे जुटते है तो उन्हे जंगल मे एक पड़वे (भैस का बच्चा) का आधा खाया हुआ शव िमलता है, िजसकी जांच कराने पर इसमे जहर िमलाकर जानबूझकर जंगल मे रखे जाने की बात पता चलती है. और जब इस मामले की जांच बहुत तीव्रता के साथ आगे बढती है तब मामले का खुलासा होता है. िजससे यह पता चलता है िक जंगल के पास के गाँव नारोसा के लोगो की भैस को बाघ िशकार करके मार िदया था. इसी भैस और बाद मे इसके पड़वे के मारे जाने के नुकसान से आहत और बाघ के हमले से भयभीत लोगो ने बाघ से बदला लेने के िलए मरे हुए पड़वे के मांस मे जहर िमलकर रख िदया िजसे खाने के बाद बाघ की मौत हो गई. पीलीभीत के तत्कालीन प्रभागीय वनािधकारी वीके िसह बताते है “बगल के ही गाँव के लोगो ने अपनी भैस चराने के िलए चारे पर दी हुई थी और जंगल के केत मे अच्छा और मुफ्त चरागाह िदखने के कारण चराने वाले अपनी भैस लेकर वहाँ आ जाते है. अब अगर कोई बाघ के केत मे भैस लेकर आएगा तो िफर बाघ का दोष तो कहा जा नही सकता है. बाघ का सबसे पसंदीदा िशकार भी भैस ही होती है. इसके बाद गाँव गाँव वालो ने बकायदा बाघ को मारने के िलए अिभयान के तहत शव मे मांस िमलकर रख िदया था. अब चूिक बाघ मांस को िनगलता है इसिलए जहर ँ सीधा उसके पेट मे चला गया और उसकी मौत हो गई. पहले बाघ के मरने के बाद संयोग्वाश दूसरे बाघ ने भी वही मांस खा िलया िजससे अगले ही िदन उसकी भी लाश बरामद हुई थी.” एक केत मे दो बाघ होने की संभावना पर वनािधकारी ने बताया “हो सकता है दूसरा वाला उसी बाघ का करीबी िरश्तेदार या भाई ही रहा हो िजसका कारण यह था िक एक केत मे दो नर बाघ नही रहते है.” इस पूरे मामले मे िगरफ्तारी की बात पर वह बताते है “इस मामले मे तीन ग्रामीणो की िगरफ्तारी हुई है और इनकी जमानत स्थानीय िजला अदालत से खािरज भी हो चुकी है. आरोिपयो मे एक व्यक्तिक की िगरफ्तारी होना शेष है. शेष कायरवाही जारी है.” उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा के साथ सटे तराई के जनपदो बहराइच, लखीमपुर और पीलीभीत मे करीब 1200 वगर िकलोमीटर के केत घने जंगल से भरे है । इस 1200 िकलोमीटर की वन पट्टी मे कई जगहो पर कई जगह जंगल का केतफल काफी ज्यादा है और कही काफी सकरे वन केत है. इन्ही वन केतो मे अब इतना ज्यादा आबादी
  • 2. का दबाव बढ़ता जा रहा है िक जंगलो के िनपट कोने भी मनुष्यो से खाली नही है. दुधवा टाइगर िरजवर जो उत्तर प्रदेश अपनी तरह का एकमात संरिकत बाघ केत है वहाँ के लीको मे गािड़यो की आवाजाही और लोगो की भरमार ने उस इलाके को भी जंगल से दूर िकसी शहरी कसबे का रूप प्रदान कर िदया है. इसी दुधवा केत के िकशनपुर वनकेत मे 27 मई को एक बाघ का शव िमलता है िजसका िपछला िहस्सा बुरी तरह से कितग्रस्त होता है और िजसकी मौत स्पष रूप से िकसी गाडी के टक्कर से होने की जानकारी प्राप होती है. यह कोई पहला मामला नही नही है जब बाघ की मौत िकसी गाड़ी के टक्कर से दुधवा जैसे बाघ संरिकत केत के अंतगरत हुई. दुधवा के इलाके मे साल दर साल िकसी ना िकसी गाडी के टक्कर से बाघ की मौत की खबर आती रहती है. दुधवा के िफल्ड िनदेशक से इस मामले पर बात करने की कोिशश की गई तो उनसे बात ही नही हो सकी. बाघो के िलए संरिकत केतो अगर गािडयां इसी प्रकार चलती रहेगी और बाघो को मारती रहेगी तो अिधकारी के वल अिधकारी बने बैठे रहेगे तो िफर कै से यह िवलुप होता जीव बच पायेगा. इन तीन घटनाओ के उपरान्त अगस्त महीने मे ही 12 तारीख को िफर उसी पीलीभीत के पूरनपुर रे ज मे एक और नर बाघ का शव शारदा हरदोई नहर मे िमला. िजसको लेकर िफर बाघ की हत्या की आशंका ही ज्यादा प्रबल रूप से पता चलती है. अब चूिक बाघ प्राकृत ितक रूप से एक कु शल तैराक होता है जो बाढ़ के दौर मे भी आसानी से ँ नदी मे तैर लेता है तो उसका नहर मे डू बना एक आश्चर्यरजनक तथ्य लगता है. बाघ की मौत के बारते मे जानकारी लेने के िलए जब भी पीलीभीत के नए वनािधकारी से संपकर करने की कोिशश की गई वह िकसी ना िकसी मीिटग मे ही व्यक्तस्त िमले. बाघो की इन चार मौतो से बाघो के संरकण के प्रित हो रही लापरवाही और बाघो के केतो मे लगातार बढ़ रहे मानवीय हस्तकेप से इस जीव का संरकण मुिश्कल ही होता जा रहा है. वन्य जीवो के िलए काम करने वाली संस्था डब्लूडब्लूएफ इं िडया के प्रदेश प्रमुख डॉ मुिदत गुपा कहते है “बाघो की मौत मे इनका मनुष्यो के साथ हो रहा संघष र ही प्रमुख कारण बनता जा रहा है. इसको रोकने के िलए कु छ ठोस कदम उठाने पड़ेगे िजससे मनुष्यो का दखल बाघ के िलए िचिन्हत केतो मे नही हो”. उत्तर प्रदेश के ताराओ इलाके के यह जंगल बाघो के िलए काफी अनुकूल केत माने जाते रहे है. यहाँ उनके िलए प्राकृत ितक रूप से वह सारी चीज़े उपलब्ध है जो उनके िवकास के िलए आवश्यक है. साथ ही वन िवभाग और अन्य संस्थाओ के तमाम सवे मे यह बात िसद भी हो चुकी है ऐसे मे प्रदेश मे बाघो की इस प्रकार की मौतो को रोकने के िलए कड़े कदम और अिधकािरयो पर उिचत दबाव बनाना आवश्यक है. अगर जंगलो मे भी गािड़यो और जहर से बाघ मरे गे तो िफर यह बाघ जायेगे कहाँ?