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राघव राजगढ़िया
प्रणय सारदा
प्रेक्षा मानढसिंका
HINDI
ACTIVITY
पाठ-मनुष्यता
HI
इस “मनुष्यता”कविता में कवि यह समझआना चाह रहे है की - मृत्यु तो वनवित है पर हमें
ऐसा क
ु छ करना चावहए की लोग हमें मृत्यु क
े बाद भी याद रखे ।असली मनुष्य िही है
जो दू सरोों क
े वलए जीना ि मरना सीख ले। दू सरे भाग में कवि कहते हैं वक मनुष्य िही
कहलाता है जो दू सरोों की वचोंता करे । उसक
े बाद कवि हमें यह समझाना चाहते हैं वक
पुराणोों में उन लोगो का उदाहरण वदया है वजन्ोोंने दू सरोों क
े वलए त्याग वकया हो ।सच्चा
मनुष्य िही है जो त्याग भाि जान ले |विर कवि हमको यह समझना चाह रे है की
मनुष्य में दया का भाि भी होना चावहए, मनुष्योों िही कहलाता है जो दू सरोों क
े वलए
मारता और जीता है।विर कवि हमें यह समझआ रे है वक यहााँ कोई अनाथ नवह है सब
ईश्वर की सोंतान है। हमें बेध भाि से ऊपर उठकर सोचना चावहए और हमें दू सरोों का
पैरोपकार ि कल्याण करना चावहए।कवि यह भी कहते हैं की सभी मनुष्य भlई बन्धु है
और मनुष्य िही है जो दुख में दू सरे मनुष्योों का साथ देते हैं। अोंत में कवि यह कहते है
की मनुष्योों को अपने चुने हुए रास्ोों par चलना चावहए, आपसी समझ को बनाए रखना
चावहए और भेदभाि को नहीों बढाना चावहए इसी से हर मनुष्योों का कल्याण और उद्धार
हो सकता हैl
पाठ- बडे भाई साहब
लेखक- प्रेमचोंद
कहानी बडे भाई साहब से हमको यह
प्रेरणा वमलती है वक क
े िल वकताबी ज्ञान
क
े माध्यम से हम जीिन में सिल नहीों
हो सकते जीिन में पढाई का वजतना
महत्व है उतना ही महत्व खेलोों का भी
है।और तो और हमें अपने बडे और
अनुभिी व्यक्ति का कहना मानना
चावहए क्ोोंवक जो कायय हम अभी कर
रहे हैं िह उस कायय को पहले ही कर
चुक
े हैं और उन्ें यह भी पता होता है वक
इसका क्ा पररणाम वनकलेगा।
 समाज में सुखी जीवन जीने क
े ढिए ररश्तिं-नाततिं
का बहुत अढिक महत्त्व है। परन्तु आज क
े समाज
में सभी मानवीय और पाररवाररक मूल्तिं और
कततव्तिं कत पीछे छतड़ते जा रहे हैं। ज्यादातर ितग
क
े वि स्वार्त क
े ढिए ही ररश्े ढनभाते हैं। जहााँ
ितगतिं कत िगता है ढक उनका फायदा नहीिं हत रहा
है वहााँ ितग जाना ही बिंद कर देते हैं। आज का
व्क्ति स्वार्ी मनतवृढत का हत गया है। वह क
े वि
अपने मतिब क
े ढिए ही ितगतिं से ढमिता है। वह
अपने अमीर ररश्ेदारतिं से रतज ढमिना चाहता है
परन्तु अपने गरीब ररश्ेदारतिं से कतसतिं दू र भागता
है।
 हमारे समाज में हमें देखने कत ढमिता है की
क
ु छ बुजुगत भरतसा करक
े अपनी ढजिंदगी में ही
अपनी जायदाद कत अपने ररश्ेदारतिं या ढकसी
और क
े नाम ढिखवा देते हैं, वे सतचते हैं की
ऐसा करने से उनका बु़िापा आसानी से काट
जाएगा। पहिे-पहिे तत ररश्ेदार भी उनका
बहुत आदर-सम्मान करते हैं, परन्तु बु़िापे में
पररवार वाितिं कत दत वि का खाना देना भी
बुरा िगने िगाता है। बाद में उनका जीवन
ढकसी क
ु त्ते की तरह हत जाता है, उन्हें कतई
पूछने वािा भी नहीिं हतता।
THANK YOU!!!

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  • 3. HI इस “मनुष्यता”कविता में कवि यह समझआना चाह रहे है की - मृत्यु तो वनवित है पर हमें ऐसा क ु छ करना चावहए की लोग हमें मृत्यु क े बाद भी याद रखे ।असली मनुष्य िही है जो दू सरोों क े वलए जीना ि मरना सीख ले। दू सरे भाग में कवि कहते हैं वक मनुष्य िही कहलाता है जो दू सरोों की वचोंता करे । उसक े बाद कवि हमें यह समझाना चाहते हैं वक पुराणोों में उन लोगो का उदाहरण वदया है वजन्ोोंने दू सरोों क े वलए त्याग वकया हो ।सच्चा मनुष्य िही है जो त्याग भाि जान ले |विर कवि हमको यह समझना चाह रे है की मनुष्य में दया का भाि भी होना चावहए, मनुष्योों िही कहलाता है जो दू सरोों क े वलए मारता और जीता है।विर कवि हमें यह समझआ रे है वक यहााँ कोई अनाथ नवह है सब ईश्वर की सोंतान है। हमें बेध भाि से ऊपर उठकर सोचना चावहए और हमें दू सरोों का पैरोपकार ि कल्याण करना चावहए।कवि यह भी कहते हैं की सभी मनुष्य भlई बन्धु है और मनुष्य िही है जो दुख में दू सरे मनुष्योों का साथ देते हैं। अोंत में कवि यह कहते है की मनुष्योों को अपने चुने हुए रास्ोों par चलना चावहए, आपसी समझ को बनाए रखना चावहए और भेदभाि को नहीों बढाना चावहए इसी से हर मनुष्योों का कल्याण और उद्धार हो सकता हैl
  • 4. पाठ- बडे भाई साहब लेखक- प्रेमचोंद
  • 5. कहानी बडे भाई साहब से हमको यह प्रेरणा वमलती है वक क े िल वकताबी ज्ञान क े माध्यम से हम जीिन में सिल नहीों हो सकते जीिन में पढाई का वजतना महत्व है उतना ही महत्व खेलोों का भी है।और तो और हमें अपने बडे और अनुभिी व्यक्ति का कहना मानना चावहए क्ोोंवक जो कायय हम अभी कर रहे हैं िह उस कायय को पहले ही कर चुक े हैं और उन्ें यह भी पता होता है वक इसका क्ा पररणाम वनकलेगा।
  • 6.
  • 7.  समाज में सुखी जीवन जीने क े ढिए ररश्तिं-नाततिं का बहुत अढिक महत्त्व है। परन्तु आज क े समाज में सभी मानवीय और पाररवाररक मूल्तिं और कततव्तिं कत पीछे छतड़ते जा रहे हैं। ज्यादातर ितग क े वि स्वार्त क े ढिए ही ररश्े ढनभाते हैं। जहााँ ितगतिं कत िगता है ढक उनका फायदा नहीिं हत रहा है वहााँ ितग जाना ही बिंद कर देते हैं। आज का व्क्ति स्वार्ी मनतवृढत का हत गया है। वह क े वि अपने मतिब क े ढिए ही ितगतिं से ढमिता है। वह अपने अमीर ररश्ेदारतिं से रतज ढमिना चाहता है परन्तु अपने गरीब ररश्ेदारतिं से कतसतिं दू र भागता है।
  • 8.  हमारे समाज में हमें देखने कत ढमिता है की क ु छ बुजुगत भरतसा करक े अपनी ढजिंदगी में ही अपनी जायदाद कत अपने ररश्ेदारतिं या ढकसी और क े नाम ढिखवा देते हैं, वे सतचते हैं की ऐसा करने से उनका बु़िापा आसानी से काट जाएगा। पहिे-पहिे तत ररश्ेदार भी उनका बहुत आदर-सम्मान करते हैं, परन्तु बु़िापे में पररवार वाितिं कत दत वि का खाना देना भी बुरा िगने िगाता है। बाद में उनका जीवन ढकसी क ु त्ते की तरह हत जाता है, उन्हें कतई पूछने वािा भी नहीिं हतता।