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अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल िलाम अथवा डॉक्टर ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल िलाम (15 अक्टूबर 1931 - 27
जुलाई 2015) जजन्हें ममसाइल मैन और जनता िे राष्ट्रपतत के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें
ननवााचित राष्ट्रपनत थे।[3] वे भारत के पूवा राष्ट्रपनत, जानेमाने वैज्ञाननक और अभभयंता के रूप में ववख्यात थे।
इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञाननक और ववज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में िार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं ववकास
संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतररक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागररक अंतररक्ष कायाक्रम
और सैन्य भमसाइल के ववकास के प्रयासों में भी शाभमल रहे। इन्हें बैलेजस्टक भमसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योचगकी के
ववकास के कायों के भलए भारत में भमसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।[4]
इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्ववतीय
परमाणु परीक्षण में एक ननणाायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैनतक भूभमका ननभाई।[5]
कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पाटी व ववपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समथान के साथ 2002 में भारत के
राष्ट्रपनत िुने गए। पांि वर्ा की अवचध की सेवा के बाद, वह भशक्षा, लेखन और सावाजननक सेवा के अपने नागररक
जीवन में लौट आए। इन्होंनेभारत रत्न, भारत के सवोच्ि नागररक सम्मान सहहत कई प्रनतजष्ट्ठत पुरस्कार प्राप्त ककये।
1962 में वे भारतीय अंतररक्ष अनुसंधान संगठन से जुडे। डॉक्टर अब्दुल कलाम को पररयोजना
महाननदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय
हाभसल हुआ। 1980 में इन्होंने रोहहणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के ननकट स्थावपत ककया था। इस प्रकार
भारत भी अंतरााष्ट्रीय अंतररक्ष क्लब का सदस्य बन गया।[6]
इसरो लॉन्ि व्हीकल प्रोग्राम को परवान
िढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान ककया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी ननयंत्रत्रत प्रक्षेपास्त्र
(गाइडेड भमसाइल्स) को डडजाइन ककया। इन्होंने अजग्न एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से
बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से हदसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के ववज्ञान सलाहकार तथा
सुरक्षा शोध और ववकास ववभाग के सचिव थे।[6]
उन्होंने रणनीनतक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का
उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में ककया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु
ऊजाा के साथ भमलाकर ककया। इस तरह भारत ने परमाणु हचथयार के ननमााण की क्षमता प्राप्त करने में
सफलता अजजात की। डॉक्टर कलाम ने भारत के ववकासस्तर को 2020 तक ववज्ञान के क्षेत्र में
अत्याधुननक करने के भलए एक ववभशष्ट्ट सोि प्रदान की।[6]
यह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञाननक
सलाहकार भी रहे। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं ववकास संस्थान में वापस ननदेशक के तौर पर
आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान "गाइडेड भमसाइल" के ववकास पर के जन्ित ककया। अजग्न
भमसाइल और पृथवी भमसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में
वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञाननक सलाहकार ननयुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत
ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण ककया और परमाणु शजक्त से संपन्न राष्ट्रों
की सूिी में शाभमल हुआ।[6]

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  • 1. अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल िलाम अथवा डॉक्टर ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल िलाम (15 अक्टूबर 1931 - 27 जुलाई 2015) जजन्हें ममसाइल मैन और जनता िे राष्ट्रपतत के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें ननवााचित राष्ट्रपनत थे।[3] वे भारत के पूवा राष्ट्रपनत, जानेमाने वैज्ञाननक और अभभयंता के रूप में ववख्यात थे। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञाननक और ववज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में िार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं ववकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतररक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागररक अंतररक्ष कायाक्रम और सैन्य भमसाइल के ववकास के प्रयासों में भी शाभमल रहे। इन्हें बैलेजस्टक भमसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योचगकी के ववकास के कायों के भलए भारत में भमसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा।[4] इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्ववतीय परमाणु परीक्षण में एक ननणाायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैनतक भूभमका ननभाई।[5] कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पाटी व ववपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समथान के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपनत िुने गए। पांि वर्ा की अवचध की सेवा के बाद, वह भशक्षा, लेखन और सावाजननक सेवा के अपने नागररक जीवन में लौट आए। इन्होंनेभारत रत्न, भारत के सवोच्ि नागररक सम्मान सहहत कई प्रनतजष्ट्ठत पुरस्कार प्राप्त ककये। 1962 में वे भारतीय अंतररक्ष अनुसंधान संगठन से जुडे। डॉक्टर अब्दुल कलाम को पररयोजना महाननदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हाभसल हुआ। 1980 में इन्होंने रोहहणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के ननकट स्थावपत ककया था। इस प्रकार भारत भी अंतरााष्ट्रीय अंतररक्ष क्लब का सदस्य बन गया।[6] इसरो लॉन्ि व्हीकल प्रोग्राम को परवान िढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान ककया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी ननयंत्रत्रत प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड भमसाइल्स) को डडजाइन ककया। इन्होंने अजग्न एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। डॉक्टर कलाम जुलाई 1992 से हदसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के ववज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और ववकास ववभाग के सचिव थे।[6] उन्होंने रणनीनतक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में ककया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊजाा के साथ भमलाकर ककया। इस तरह भारत ने परमाणु हचथयार के ननमााण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अजजात की। डॉक्टर कलाम ने भारत के ववकासस्तर को 2020 तक ववज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुननक करने के भलए एक ववभशष्ट्ट सोि प्रदान की।[6] यह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञाननक सलाहकार भी रहे। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं ववकास संस्थान में वापस ननदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान "गाइडेड भमसाइल" के ववकास पर के जन्ित ककया। अजग्न भमसाइल और पृथवी भमसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञाननक सलाहकार ननयुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण ककया और परमाणु शजक्त से संपन्न राष्ट्रों की सूिी में शाभमल हुआ।[6]