2. 1. दयानन्द का सच्चा अनुयायी भूत-प्रेत,
पिशाच, डाककनी-शाककनी आकद कपपित
िदार्थों से कभी भयभीत नहीं होता । सच
है – 'भूत पिशाच पनकट नहीं आवे,
दयानन्द जं नाम सुनावे' !
3. 2.
आि फपित ज्योपतष, जन्मित्र, मुहूति,
कदशाशूि, शुभाशुभ ग्रहों के फि, झूठे
वास्तु शास्त्र आकद धनािहरण के अनेक
पमथ्या जाि से स्वयं को ंचा िग ।
4. 3.
कोई िाखण्डी साधु, िुजारी, गंगा िुत्र
आिको ंहका कर आिसे दान-िुण्य के
ंहाने अिनी जें गरम नहीं कर सकेगा ।
5. 4.
शीतिा, भैरव, कािी, करािी, शनैश्चर
आकद अि-देवता पजनका वस्तुतः कोई
अपस्तत्व ही नहीं है, आिका कुछ भी
अपनष्ट नहीं कर सकगे । जं वे हैं ही
नहीं तो ंेचारे करगे क्या ?
6. 5.
आि मकदरािान, धूम्रिान, पवपभन्न प्रकार
के मादक द्रव्यों से ंचे रह कर अिने
स्वास्थ्य और धन की हापन से ंच जायगे ।
8. 7.
जीवन का िक्ष्य सादगी को ंनायगे और
पमत व्यवस्र्था के आदशि को स्वीकार
करने के कारण दहेज, पमिनी, पववाहों म
अिव्यय आकद िर अंकुश िगाकर आदशि
उिपस्र्थत करगे ।
9. 8.
दयानन्द का अनुयायी होने के कारण
अिने देश की भाषा, संस्कृपत, स्वधमि
तर्था स्वदेश के प्रपत आिके हृदय म
अनन्य प्रेम (आसपि) रहेगा ।
10. 10.
आि अिने ंच्चों म अच्छे संस्कार डािगे
ताकक आगे चिकर वे पशष्ट, अनुशासन
पप्रय, आज्ञाकारी ंन तर्था ंडों का
सम्मान कर ।
11. 11.
आि अिने कायि, व्यवसाय, नौकरी आकद
म समय का िािन, ईमानदारी,
कर्त्िव्यिरायणता को महत्त्व दगे ताकक
िोग आिको पमसाि के तौर िर िेश कर
।
12. 12.
वेदाकद सद् ग्रन्र्थों के अध्ययन म आिकी
रुपच ंढेगी, फितः आिका ंौपद्धक
पिपतज पवस्तृत होगा और पवश्व-ंन्धुता
ंढेगी ।
13. 13.
जीवन और जगत् के प्रपत आिका सोच
अपधकापधक वैज्ञापनक होता चिा जायेगा ।
इसे ही स्वामी दयानन्द ने 'सृपष्टक्रम से
अपवरुद्ध होना' कहा है ।
आि इसी ंात को सत्य मानगे जो युपि, तकि
और पववेक की कसौटी िर खरी उतरती हो ।
पमथ्या चमत्कारों और ऐसे चमत्कार कदखाने
वािे ढोंगी ंांाओं के चक्कर म दयानन्द के
अनुयायी कभी नहीं आते ।
14. 14.
दयानन्द की पशिा आिको एक िररिूणि
मानव ंना देगी । आि जापत, धमि,
भाषा, संस्कृपत के भेदों से ऊिर उठकर
मनुष्य मात्र की एकता के हामी ंन
जायगे ।
16. 16.
शैव, शाि, कािापिक, वैष्णव,
ब्रह्माकुमारी आकद सम्प्रदायों के पमथ्या
जाि से हटकर आि एक अपद्वतीय
सपच्चदानन्द िरमात्मा के उिासक ंन
जायगे ।
17. 17.
आिकी गृहस्र्थी म िंच महायज्ञों का
प्रवर्त्िन होगा पजससे आि िरमात्मा,
सूयािकद देवगण, माता-पिता आकद
पितृगण, अपतपर्थ एवं सामान्य जीवों की
सेवा का आदशि प्रस्तुत करगे ।
18. क्या दयानन्द के अनुयायी ंनने से पमिने
वािे उियुिि िाभ कोई कम महत्त्व के हैं ?
तो फिर देर क्यों ?
आज ही दयानन्द के सैननकों में अपना नाम
ललखायें ।