Batla Complainant Kamran Siddique - ink thrower @ Baba Ramdev
पूछता है भगत सिंह आज
1. पूछता है भगत स ह आज "तुम ....
िं े मेरी महफफ़ल में हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ऩा आज
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"फकसक" ददल में है ???
े
"आज़ादी क सूरज को आज गहण
े ृ
क्ूूँ लग ग़्ा,
एक तरि ्े ऱाजनेत़ा दे श को हैं
्े गल़ामी क़ा दद़्ा क्ूँू फिर से आज
ु
नोचते,
जग ग़्ा,
एक तरि हम सभी बस अपने ब़ारे
आज बैठे हम बन चहे अपने बबल में
ू
सोचते,
हैं, सरफ़रोशी की तमन्ऩा आज
इस "आज़ाद" मुल्क में हम करते अपने
"फकसक ददल में है??
े
ददल की हैं,
सरफ़रोशी की तमन्ऩा आज
एक इंकल़ाब क ललए ज़ान
े े
"फकसक" ददल में है ???
े
दी शूरवीरों ने,
आज अजुन मर ग़्ा है खद अपने
ु
"घसखोरी" और "गरीबी"
ू
तीरों से,
को लमलत़ा आलश़्ाूँ ्ह़ाूँ,"
दोस्ती क़ा नक़ाब ओढे कई दश्मन
ु
आज़ादी" को तरसते ्े जमीं और
महफफ़ल में हैं,
आस्म़ां,
सरफ़रोशी की तमन्ऩा आज
भ़ारत म़ात़ा रही पुक़ार "तुझे",भ़ारत म़ात़ा रही मुजश्कल में है,
"फकसक" ददल में है ???
े
सरफ़रोशी की तमन्ऩा क़्ा तुम्ह़ारे
ददल में है ???"
दे खकर थ़ा जजन्हें ,
पूछत़ा है भगत लसंह आज "तुमसे….
ि़ांसी क़ा िद़ा क़ांपत़ा,
ं
आज वो जह़ां से क्ूूँ हो गए
हैं ल़ापत़ा,
ढूूँढत़ा हूूँ सोचकर की बैठे