बिच्छूबूटी या स्टिंगिंग नेटल (Stinging Nettle)
बिच्छूबूटी या स्टिंगिंग नेटल (Stinging Nettle) का वानस्पतिक नाम अर्टिका डायोइका Urtica dioica है। यह बहुत काम की जड़ी-बूटी है। इसे संस्कृत में वृष्चिक और हिन्दी में बिच्छू घास, कली और कंदाद्ली भी कहते हैं। यह कैंसर और अन्य रोगों के उपचार में बहुत उपयागी है। बिच्छूबूटी यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरीका और उत्तरी अफ्रीका में पाई जाती है। पूरे विश्व में नेटल समुदाय, अर्टिकेसिया, की 500 उपजातियां पाई जाती हैं। भारत में यह जंगली पौधे के रूप में अपने आप पैदा हो जाती है और पहाड़ी क्षेत्रों में बहुतायत से पाई जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है और इसका स्वाद कुछ-कुछ पालक की तरह होता है।
इसका प्रयोग स्थानीय लोग प्रायः पशुओं के चारे के रूप में करते हैं। इसका प्रयोग दण्ड देने के लिए भी किया जाता है। बिच्छू घास को पानी में भिगाकर लगाने से दण्ड से अपराधी को नानी याद आने लगती है। उत्तराखण्ड के कई इलाकों में शराबियों को सुधारने के लिए बिच्छू धास का सहारा लिया जाता है। शनिदेव के प्रकोप से बचने और उन्हें पटाने के लिए भी बिच्छू धास का प्रयोग ज्योतिषी बताते हैं।
बिच्छूबूटी या स्टिंगिंग नेटल (Stinging Nettle)
बिच्छूबूटी या स्टिंगिंग नेटल (Stinging Nettle) का वानस्पतिक नाम अर्टिका डायोइका Urtica dioica है। यह बहुत काम की जड़ी-बूटी है। इसे संस्कृत में वृष्चिक और हिन्दी में बिच्छू घास, कली और कंदाद्ली भी कहते हैं। यह कैंसर और अन्य रोगों के उपचार में बहुत उपयागी है। बिच्छूबूटी यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरीका और उत्तरी अफ्रीका में पाई जाती है। पूरे विश्व में नेटल समुदाय, अर्टिकेसिया, की 500 उपजातियां पाई जाती हैं। भारत में यह जंगली पौधे के रूप में अपने आप पैदा हो जाती है और पहाड़ी क्षेत्रों में बहुतायत से पाई जाती है। इसकी तासीर गर्म होती है और इसका स्वाद कुछ-कुछ पालक की तरह होता है।
इसका प्रयोग स्थानीय लोग प्रायः पशुओं के चारे के रूप में करते हैं। इसका प्रयोग दण्ड देने के लिए भी किया जाता है। बिच्छू घास को पानी में भिगाकर लगाने से दण्ड से अपराधी को नानी याद आने लगती है। उत्तराखण्ड के कई इलाकों में शराबियों को सुधारने के लिए बिच्छू धास का सहारा लिया जाता है। शनिदेव के प्रकोप से बचने और उन्हें पटाने के लिए भी बिच्छू धास का प्रयोग ज्योतिषी बताते हैं।