छु आ है अंिर्मन की गहराई से
कभी िुम्हारे
दिल की भावनाओं को
और र्हसूस ककया है
िब...
बर्म सा जर्ा र्न
धीरे धीरे पिघल कर
एक कपविा बनने लगिा है ...
वफ़ा का नार् िुर्ने िोस्िी दिया कै से, हर
एक िोस्ि वर्ािार िो नही होिा.......
अभभर्ान की चोट सहन हो सकिी है
िर स्वाभभर्ान िर की गई चोट सहन
नही होिी।
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चेहरे िर सािगी हो भले, शीशे को
क्या खबर?
‘नीर’ वो िो भसर्म चेहरा दिखािा
है.
अब अिने ज़ख़्र् दिखाऊँ ककसे और ककसे नहीं
बेगाने सर्झिे नहीं और अिनो को दिखिे नहीं...!!
बहुि सीधे न बनो
क्योंकक
जो लोग दिल के अच्छे होिे हैं
दिर्ाग वाले जर् कर उनके र्ज़े लेिे
हैं
चैन से रहने का हर्को र्शवरा र्ि िीजजये....
अब र्जा िेने लगी है जजंिगी की र्ुजककलें...।।
लौट आिा हूँ वािस घर की िरर्,
हर रोज़ थका-हारा,
आज िक सर्झ नहीं आया की
जीने के भलए कार् करिा हूँ
या कार् करने के भलए जीिा हूँ।
बचिन र्ें सबसे अधधक बार िूछा गया सवाल -
“बङे हो कर क्या बनना है ?”
जवाब अब भर्ला है, – “कर्र से बच्चा बनना है.
आज आईने के सार्ने खडे हो खुि से र्ार्ी र्ांग
ली र्ेने..
सबसे ज्यािा खुि का दिल िुखाया हैं
गैरो को खुश करने र्ें........