Successfully reported this slideshow.
Your SlideShare is downloading. ×

ये दुनिया अपनी लीजे

Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Ad
Upcoming SlideShare
सरल जीवन
सरल जीवन
Loading in …3
×

Check these out next

1 of 1 Ad

ये दुनिया अपनी लीजे

Download to read offline

ये दुनिया अपनी लीजे by
डॉ. आशा चौधरी

किताब के बारे में...
एक ही कॉलोनी में अपने-अपने परिवारों के दायरे में सीमित रहने वाले दो युवा बाहर किसी अनजान शहर में दोस्तों की तरह मिलते हैं और कहा है किसी शायर ने-‘‘एक मंजिल राही दो फिर प्यार न कैसे हो ?‘‘ इसी एक मंजिल की ओर दोनों के कदम उन्हें ले चलते हैं, धन-दौलत के अभिमान, परिवार की मान-मर्यादा की अकड़ व गुमान उनके इन साथ-साथ चलते कदमों को न रोक पाऐ क्योंकि उन कदमों के नीचे वास्तविकता, जिम्मेदारी भरी आपसी समझ, मानवीयता, धैर्य व बुद्धि की ठोस जमीन जो थी। ये यूं ही बैठे ठाले लिखी गई एक रोमांटिक उपन्यास है जिसमें नायक-नायिका के बीच आर्थिक फासले हैं जिन्हें वे कोई फासले नहीं मानते। सोच तथा मानसिकता प्रेममय व खरी हो तो फिर कोई सामाजिक, जातिगत व आर्थिक बंधन दो प्रेमियों को मिलने से नहीं रोक सकते। हालांकि घर-परिवार में अनेक बाधाऐं आज के खुले माहौल में भी उनका रास्ता रोकने में लगी रहती हैं लेकिन मजबूत मनोबल, ईमानदार प्रयास व निर्बाध इच्छाशक्ति के सहारे वे अपनी नैया आप खेने में सक्षम लगते हैं। वे अपनी नई ही दुनिया बसाने जा रहे हैं कि जिसमें किराऐ की हंसी व उधार की मुस्कानें न हों, जिसमें नजरों में सहमापन व मन में धुकधुकी न हो। जिसमें कोई अपने टूटे आईनों से आपको आईना दिखाने वाला न हो। आप इस स्वस्थ मानसिकता व सहज स्नेह के भाव से रहने योग्य हो जाओ तो ही आपका उनकी इस दुनिया में स्वागत होगा !

यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!

https://hindi.shabd.in/dr-asha-chaudhary-kii-ddaayrii-dr-asha-chaudhary/book/10087660

https://shabd.in/

ये दुनिया अपनी लीजे by
डॉ. आशा चौधरी

किताब के बारे में...
एक ही कॉलोनी में अपने-अपने परिवारों के दायरे में सीमित रहने वाले दो युवा बाहर किसी अनजान शहर में दोस्तों की तरह मिलते हैं और कहा है किसी शायर ने-‘‘एक मंजिल राही दो फिर प्यार न कैसे हो ?‘‘ इसी एक मंजिल की ओर दोनों के कदम उन्हें ले चलते हैं, धन-दौलत के अभिमान, परिवार की मान-मर्यादा की अकड़ व गुमान उनके इन साथ-साथ चलते कदमों को न रोक पाऐ क्योंकि उन कदमों के नीचे वास्तविकता, जिम्मेदारी भरी आपसी समझ, मानवीयता, धैर्य व बुद्धि की ठोस जमीन जो थी। ये यूं ही बैठे ठाले लिखी गई एक रोमांटिक उपन्यास है जिसमें नायक-नायिका के बीच आर्थिक फासले हैं जिन्हें वे कोई फासले नहीं मानते। सोच तथा मानसिकता प्रेममय व खरी हो तो फिर कोई सामाजिक, जातिगत व आर्थिक बंधन दो प्रेमियों को मिलने से नहीं रोक सकते। हालांकि घर-परिवार में अनेक बाधाऐं आज के खुले माहौल में भी उनका रास्ता रोकने में लगी रहती हैं लेकिन मजबूत मनोबल, ईमानदार प्रयास व निर्बाध इच्छाशक्ति के सहारे वे अपनी नैया आप खेने में सक्षम लगते हैं। वे अपनी नई ही दुनिया बसाने जा रहे हैं कि जिसमें किराऐ की हंसी व उधार की मुस्कानें न हों, जिसमें नजरों में सहमापन व मन में धुकधुकी न हो। जिसमें कोई अपने टूटे आईनों से आपको आईना दिखाने वाला न हो। आप इस स्वस्थ मानसिकता व सहज स्नेह के भाव से रहने योग्य हो जाओ तो ही आपका उनकी इस दुनिया में स्वागत होगा !

यदि आप इस पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक से इस पुस्तक को पढ़ें या नीचे दिए गए दूसरे लिंक से हमारी वेबसाइट पर जाएँ!

https://hindi.shabd.in/dr-asha-chaudhary-kii-ddaayrii-dr-asha-chaudhary/book/10087660

https://shabd.in/

Advertisement
Advertisement

More Related Content

More from Shabddotin (20)

Recently uploaded (20)

Advertisement

×