2. कबीर का पररिय
कबीर दििंिी सादित्य के व्यक्ततत्व िैं। कबीर के जन्म के सिंबिंध में अनेक ककिं विक्न्तयााँ िैं। कु छ लोगों
के अनुसार वे रामानन्ि स्वामी के आशीवााि से काशी की एक ववधवा ब्राह्मणी के गर्ा से पैिा िुए थे,
क्जसको र्ूल से रामानिंि जी ने पुत्रवती िोने का आशीवााि िे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शशशु को
लिरतारा ताल के पास फें क आयी।
3. मिात्मा कबीर का जन्म-काल
मिात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में िुआ, जब र्ारतीय
समाज और धमा का स्वरुप अधिंकारमय िो रिा था।
र्ारत की राजनीततक, सामाक्जक, आचथाक एविं धाशमाक
अवस्थाएाँ सोिनीय िो गयी थी। एक तरफ मुसलमान
शासकों की धमारिंधता से जनता त्रादि- त्रादि कर रिी थी
और िूसरी तरफ दििंिूओिं के कमाकािंडों, ववधानों एविं पाखिंडों
से धमा- बल का ह्रास िो रिा था। जनता के र्ीतर
र्क्तत- र्ावनाओिं का सम्यक प्रिार निीिं िो रिा था।
शसद्धों के पाखिंडपूणा विन, समाज में वासना को प्रश्रय िे
रिे थे।
नाथपिंचथयों के अलखतनरिंजन में लोगों का ऋिय
रम निीिं रिा था। ज्ञान और र्क्तत िोनों तत्व
के वल ऊपर के कु छ धनी- मनी, पढ़े- शलखे की
बपौती के रुप में दिखाई िे रिा था। ऐसे नाजुक
समय में एक बड़े एविं र्ारी समन्वयकारी मिात्मा
की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रिीम
के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को
सच्िा रास्ता दिखा सके । ऐसे िी सिंघर्ा के समय
में, मस्तमौला कबीर का प्रािुार्ाव िुआ
4. जन्म
मिात्मा कबीर के जन्म के ववर्य में शर्न्न- शर्न्न मत िैं। "कबीर कसौटी' में इनका जन्म सिंवत १४५५
दिया गया िै। ""र्क्तत- सुधा- बबिंिु- स्वाि'' में इनका जन्मकाल सिंवत १४५१ से सिंवत १५५२ के बीि
माना गया िै। ""कबीर- िररत्र- बााँध'' में इसकी ििाा कु छ इस तरि की गई िै, सिंवत िौिि सौ पिपन
(१४५५) ववक्रमी ज्येष्ठ सुिी पूर्णामा सोमवार के दिन, एक प्रकाश रुप में सत्य पुरुर् काशी के "लिर
तारा'' (लिर तालाब) में उतरे। उस समय पृथ्वी और आकाश प्रकाशशत िो गया। समस्त तालाब प्रकाश से
जगमगा गया। िर तरफ प्रकाश- िी- प्रकाश दिखने लगा, कफर वि प्रकाश तालाब में ठिर गया। उस
समय तालाब पर बैठे अष्टानिंि वैष्णव आश्ियामय प्रकाश को िेखकर आश्िया- िककत िो गये। लिर
तालाब में मिा- ज्योतत फै ल िुकी थी। अष्टानिंि जी ने यि सारी बातें स्वामी रामानिंि जी को बतलायी,
तो स्वामी जी ने किा की वि प्रकाश एक ऐसा प्रकाश िै, क्जसका फल शीघ्र िी तुमको िेखने और सुनने
को शमलेगा तथा िेखना, उसकी धूम मि जाएगी।
एक दिन वि प्रकाश एक बालक के रुप में जल के ऊपर कमल- पुष्पों पर बच्िे के रुप में पााँव फें कने
लगा। इस प्रकार यि पुस्तक कबीर के जन्म की ििाा इस प्रकार करता िै :-
""िौिि सौ पिपन गये, ििंद्रवार, एक ठाट ठये।
जेठ सुिी बरसायत को पूनरमासी प्रकट र्ये।।''
5. जन्म स्थान
कबीर ने अपने को काशी का जुलािा किा िै। कबीर पिंथी के अनुसार उनका तनवास स्थान काशी था।
बाि में, कबीर एक समय काशी छोड़कर मगिर िले गए थे। ऐसा वि स्वयिं किते िैं :-
""सकल जनम शशवपुरी गिंवाया।
मरती बार मगिर उदठ आया।।''
किा जाता िै कक कबीर का पूरा जीवन काशी में िी गुजरा, लेककन वि मरने के समय मगिर िले गए
थे। कबीर विााँ जाकर िु:खी थे। वि न िािकर र्ी, मगिर गए थे।
""अबकिु राम कवन गतत मोरी।
तजीले बनारस मतत र्ई मोरी।।''
किा जाता िै कक कबीर के शत्रुओिं ने उनको मगिर जाने के शलए मजबूर ककया था। वि िािते थे कक
आपकी मुक्तत न िो पाए, परिंतु कबीर तो काशी मरन से निीिं, राम की र्क्तत से मुक्तत पाना िािते थे
:-
""जौ काशी तन तजै कबीरा
तो रामै कौन तनिोटा।''
6. कबीर के माता- पिता
कबीर के माता- वपता के ववर्य में र्ी एक राय तनक्श्ित निीिं िै। "नीमा' और "नीरु' की
कोख से यि अनुपम ज्योतत पैिा िुई थी, या लिर तालाब के समीप ववधवा ब्राह्मणी की
पाप- सिंतान के रुप में आकर यि पतततपावन िुए थे, ठीक तरि से किा निीिं जा सकता िै।
कई मत यि िै कक नीमा और नीरु ने के वल इनका पालन- पोर्ण िी ककया था। एक
ककवििंती के अनुसार कबीर को एक ववधवा ब्राह्मणी का पुत्र बताया जाता िै, क्जसको र्ूल से
रामानिंि जी ने पुत्रवती िोने का आशीवााि िे दिया था।
एक जगि कबीर ने किा िै :-
"जातत जुलािा नाम कबीराबतन बतन कफरो उिासी।'
कबीर के एक पि से प्रतीत िोता िै कक वे अपनी माता की मृत्यु से बिुत िु:खी िुए थे।
उनके वपता ने उनको बिुत सुख दिया था। वि एक जगि किते िैं कक उसके वपता बिुत
"गुसाई' थे। ग्रिंथ सािब के एक पि से ववदित िोता िै कक कबीर अपने वयनकाया की उपेक्षा
करके िररनाम के रस में िी लीन रिते थे। उनकी माता को तनत्य कोश घड़ा लेकर लीपना
पड़ता था। जबसे कबीर ने माला ली थी, उसकी माता को कर्ी सुख निीिं शमला। इस कारण
वि बिुत खीज गई थी। इससे यि बात सामने आती िै कक उनकी र्क्तत एविं सिंत- सिंस्कार
के कारण उनकी माता को कष्ट था।
7. स्री और सिंतान
कबीर का वववाि वनखेड़ी बैरागी की पाशलता कन्या "लोई' के साथ िुआ था। कबीर को कमाल और कमाली नाम की िो सिंतान र्ी थी। ग्रिंथ
सािब के एक श्लोक से ववदित िोता िै कक कबीर का पुत्र कमाल उनके मत का ववरोधी था।
बूड़ा बिंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
िरर का शसमरन छोडड के , घर ले आया माल।
कबीर की पुत्री कमाली का उल्लेख उनकी बातनयों में किीिं निीिं शमलता िै। किा जाता िै कक कबीर के घर में रात- दिन मुडडयों का जमघट
रिने से बच्िों को रोटी तक शमलना कदठन िो गया था। इस कारण से कबीर की पत्नी झुिंझला उठती थी। एक जगि कबीर उसको समझाते िैं
:-
सुतन अिंघली लोई बिंपीर।
इन मुडड़यन र्क्ज सरन कबीर।।
जबकक कबीर को कबीर पिंथ में, बाल- ब्रह्मिारी और ववराणी माना जाता िै। इस पिंथ के अनुसार कामात्य उसका शशष्य था और कमाली तथा
लोई उनकी शशष्या। लोई शब्ि का प्रयोग कबीर ने एक जगि किं बल के रुप में र्ी ककया िै। वस्तुतः कबीर की पत्नी और सिंतान िोनों थे। एक
जगि लोई को पुकार कर कबीर किते िैं :-
"कित कबीर सुनिु रे लोई।
िरर बबन राखन िार न कोई।।'
यि िो सकता िो कक पिले लोई पत्नी िोगी, बाि में कबीर ने इसे शशष्या बना शलया िो। उन्िोंने स्पष्ट किा िै :-
""नारी तो िम र्ी करी, पाया निीिं वविार।
जब जानी तब पररिरर, नारी मिा ववकार।।''
9. कबीर के िोिे
(1)
िाि शमटी, चििंता शमटी मनवा बेपरवाि।
क्जसको कु छ निीिं िादिए वि शिनशाि॥
(2)
माटी किे कु म्िार से, तु तया रौंिे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंिूगी तोय॥
(3)
माला फे रत जुग र्या, कफरा न मन का फे र ।
कर का मन का डार िे, मन का मनका फे र ॥
(4)
ततनका कबिुाँ ना तनिंिये, जो पााँव तले िोय ।
कबिुाँ उड़ आाँखो पड़े, पीर घानेरी िोय ॥
(5)
गुरु गोवविंि िोनों खड़े, काके लागूिं पााँय ।
बशलिारी गुरु आपनो, गोवविंि दियो शमलाय ॥
10. (6)
सुख मे सुशमरन ना ककया, िु:ख में करते याि ।
कि कबीर ता िास की, कौन सुने फररयाि ॥
(7)
साईं इतना िीक्जये, जा मे कु टुम समाय ।
मैं र्ी र्ूखा न रिूाँ, साधु ना र्ूखा जाय ॥
(8)
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कु छ िोय ।
माली सीिंिे सौ घड़ा, ॠतु आए फल िोय ॥
(9)
कबीरा ते नर अाँध िै, गुरु को किते और ।
िरर रूठे गुरु ठौर िै, गुरु रूठे निीिं ठौर ॥
(10)
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कि गए िास कबीर ॥